आधुनिक किसान अपनी फसल की पैदावार में वृद्धि और उसके संरक्षण को लेकर जागरुक हो रहा है जिसके लिए वह नई-नई तकनीकों का उपयोग करने की दिशा में प्रयत्नशील है। ऐसे में कृषि क्षेत्र में नैनो तकनीक (Nano Technology) एक वरदान के रुप में काम कर रही है। यह तकनीक मिट्टी व जल के सुधार में भी अहम भूमिका निभा रही है।
वर्तमान में चिकित्सा विज्ञान, रसायन विज्ञान, ब्यूटी प्रोडक्ट्स, इलैक्ट्रनिक्स, पैकेजिंग, पर्यावरण, ऊर्जा, सूचना एवं संचार, भारी उधोग, उपभोक्ता उत्पादों (Consumer Products), कपड़ा–पेंट, डिफेंस, फार्मा जैसे तमाम क्षेत्रों में नैनो तकनीक का उपयोग हो रहा है। सच तो यह है कि 21वीं सदी में नैनो टैक्नोलॉजी हमारी अर्थव्यवस्था और समाज के लिए एक रामबाण की तरह साबित होती जा रही है।
क्या है नैनो तकनीक (Nano Technology)
नैनो का अर्थ है ऐसे पदार्थ, जो अति सूक्ष्म आकार वाले तत्वों (मीटर के अरबवें हिस्से) से बने होते हैं। दरअसल, नैनो तकनीक अणुओं और परमाणुओं की इंजीनियरिंग है, जो फिज़िक्स, केमेस्ट्री, इंफोर्मेटिक्स, और बायो टेक्नोलॉजी जैसे विषयों को आपस में जोड़ती है। नैनो तकनीक अति सूक्ष्म मशीनें बनाने का एक विज्ञान है। हालांकि कृषि क्षेत्र में ये तकनीक अभी व्यापक रुप नही ले पाई है लेकिन खाध प्रणाली और फसल संरक्षण में इसके लाभों को देखते हुए बेशक ही नैनो तकनीक का भविष्य अच्छा माना जा रहा है। वर्तमान में इस तकनीक नें मिट्टी और जल के सुधार में भी कई प्रकार की भूमिका निभाई हैं।
कृषि क्षेत्र में कैसे उपयोगी है नैनो तकनीक
कृषि व्रैज्ञानिकों की मानें तो कृषि में नैनो कणों का इस्तेमाल – पौधों के प्रजनन, उनमें अनुवाशिंक परिवर्तन, उर्वरक, नैनो-कीटनाशक, खरपतवारनाशी से लेकर फसलों के भंडारण, संरक्षण, उत्पादन, गुणवत्ता सुधार तथा फ्लेवर सभी तरह से हो रहा है। नैनोकणों के उपयोग ने न केवल फसलों की पैदावार में वृद्धि की है बल्कि कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीवों को भी बनाने में सहायता की है। इस तकनीक के ज़रिये खेती के तरीकों में बदलाव के अतिरिक्त कृषि अपशिष्ट और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में भी सहायता मिलेगी।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार 2025 तक भारत की आबादी 1.5 अरब से भी अधिक होने की उम्मीद है जाहिर सी बात है ऐसे में अनाज उत्पादन में वृद्धि की भी आवश्यकता होगी। इन हालातों में बढ़ती आबादी की अनाज संबंधी आवश्यकता को पूरी करने के लिए नैनो तकनीक कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति ला सकती है।
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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा नैनो तकनीक की शुरुआत
भविष्य में फसलों की पैदावार में वृद्धि और संरक्षण को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा कृषि में नैनो विज्ञान और प्रौधोगिकी का लाभ उठाने के लिए शोध कार्यों का आरम्भ हो गया है। इतना ही नही, देश के विभिन्न शोध संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविधालयों के साथ विज्ञान और प्रौधोगिकी विभाग मिलकर काम कर रहे हैं।
नैनो तकनीक पर संयुक्त राष्ट्र सर्वेक्षण की रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक नैनो टैक्नोलाजी से कृषि क्षेत्र में उत्पादकता के साथ-साथ पौधों को रोग से बचाने, तेजी से बीमारी का निदान करने के साथ पौधों तक पोषक तत्व पहुंचानें की क्षमता भी है।
नैनो टैक्नोलॉजी के हानिकारक प्रभाव भी है
सभी तरह से उपयोगी होने के साथ-साथ नैनो तकनीक का एक हानिकारक पहलू भी है। जैसे धात्विक (Metallic) नैनोकरण के उत्पादन और उपयोग में लगातार वृद्धि होने के कारण पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को लेकर भी चिंताएं बढ़ रही हैं। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि इस तकनीक के अधिक इस्तेमाल से मिट्टी प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से नैनोकणों का भंडार बन सकती है।
कृषि शोध पत्रिका में भी नैनोकणों को लेकर जताई गई चिंता
शोध पत्रिका साइंस एंड टोटल एन्वायरमेंट (Science and Total Enviorment) में प्रकाशित शोध के अनुसार शुद्ध पानी में उगाए गए पौधों की तुलना में कॉपर-ऑक्साइड नैनोकणों से उगाए गए जौं की जड़ों में कॉपर की मात्रा 5.7 गुना और पत्तियों में 6.4 गुना अधिक पाई गई है।
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