अच्छे कल के लिए सबसे जरूरी है शिक्षा की हर सुविधा प्राप्त होना। हर जगह तक शिक्षा को पहुँचाना हीं विकास का एकमात्र तरीका है। ऐसी हीं सोच रखने वाले हैं रणजीत सिंह डिसले। वह ऐसा मानते हैं कि शिक्षा में बदलाव लाना बहुत ही आवश्यक है।
रणजीत सिंह डिसले (Ranjit Singh Disale)
रणजीत सिंह महाराष्ट्र के सोलापुर जिले की माढ़ा के तालुका के पास परीतेवाडी गांव के रहने वाले हैं। उनके गाँव में सिर्फ दो हजार लोग हीं रहते हैं। उन्होंने सरकारी स्कूल से अपनी शिक्षा पीरी की। रणजीत ने 12,000 उम्मीदवारों के बीच ‘ग्लोबल टीचर’ पुरस्कार जीत कर पूरी दुनिया में अपने देश का नाम ऊंचा किया।
रणजीत शिक्षा में बदलाव लाना चाहते हैं
वह शिक्षा में बदलाव लाना चाहते थे और उनकी इसी मकसद की वजह से 12,000 उम्मीदवारों के बीच उन्हें ‘ग्लोबल टीचर’ पुरस्कार मिला। यह पुरस्कार जीतने वाले को सात करोड़ रुपया मिलता है। उन्होंने ना सिर्फ अपने देश में बल्कि पूरे दुनिया में असंख्य शिक्षकों को गौरवान्वित किया है।
रणजीत कई पुरस्कार से हो चुके हैं सम्मानित
रणजीत बहुत से पुरस्कार से हो चुके हैं सम्मानित। जैसे की माइक्रोसॉफ्ट के ‘इनोवेटिव एजुकेटर एक्सपर्ट’ पुरस्कार और राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के ‘ वर्ष 2018 के सर्वश्रेष्ठ नवप्रवर्तक’ पुरस्कार से लेकर ‘ग्लोबल टीचर’ पुरस्कार यह सब से हो चुके हैं सम्मानित। अभिनेता स्टीफन फ्राई ने लंदन के एक में ग्लोबल टीचर’ पुरस्कार के लिए रणजीत को चुने जाने की घोषणा की थी। पहली बार भारत के किसी शिक्षक को यह पुरस्कार मिला है, यह बहुत ही गर्व की बात हैं। सिर्फ इतना ही नहीं पूरे विश्व में रणजीत को 140 देशों से 12 हजार से अधिक शिक्षकों में से चुना गया है।
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रणजीत ने पुरस्कार के पैसे को दावेदारों के साथ बांटा
यूनेस्को और लंदन के वार्की फाउंडेशन के दिए जाने वाले इस पुरस्कार में उन्हें सात करोड़ रुपये दिए गए। रणजीत पुरस्कार के पैसे को बाकी दावेदारों के साथ बांटने की घोषणा की और वह कहते हैं कि उन्होंने यह फैसला बहुत पहले हीं सोंच-समझ कर लिया था। उन्होंने बार्शी‘भाषा’ में कहा, ‘अगर मैं यह पुरस्कार ले लूं तो सही नहीं होगा क्योंकि सभी ने शानदार काम किया है। उनका मनना है कि एक शिक्षक ‘इनकम’ के लिए नहीं ‘आउटकम’ के लिए काम करते हैं।
रणजीत के पिता ने दी शिक्षक बनने की प्रेरणा
रणजीत ने रैगिंग से परेशान होकर इंजीनियरिंग बीच में हीं छोड़ दी तब उनके पिता ने उन्हें शिक्षक बनने की प्रेरणा दी। वह 11 साल पहले सूखाग्रस्त परीतेवाड़ी में जिला परिषद प्राथमिक शाला में शिक्षक नियुक्त हुए। वह स्कूल में सिर्फ़ 110 छात्र और पांच शिक्षक थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
लड़कियों की शिक्षा पर दिया खास जोर
उस स्कूल के शिक्षकों ने लड़कियों की शिक्षा पर जोर दिया। इसके लिए उन्होंने क्विक रिस्पांस कोड पाठ्यपुस्तक लेकर आए। इसमें छात्र क्यू आर कोड स्कैन कर ऑडियो, वीडियो व्याख्यान, कहानी और प्रोजेक्ट देख सकते थे। इससे बच्चे मनोरंजन में हीं पढ़ लिया करते थे। इससे उस स्कूल को जिले के सर्वश्रेष्ठ स्कूल का पुरस्कार मिला। इसकी शुरूआत सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों से हुई।
रणजीत को आमिर खान माना जाने लगा
एक साल तक ग्लोबल टीचर’ पुरस्कार के लिए काम हुआ। इस प्रक्रिया में कोरोना महामारी के वजह से और लम्बा समय लगा। रणजीत ने हर कड़ी पर काम किया उन्हें तारे जमीं पर’ के आमिर खान जैसे किरदारों की तरह माने जाना लगा। रणजीत कहते हैं की शिक्षकों को नई पहल कर शिक्षा को रोचक बनाना चाहिए। वह सरकार से सिर्फ इतनी सी मांग करते हैं कि एक पूरी पीढ़ी को तैयार करने वाले शिक्षकों की आवाज सुनी जानी चाहिए।
कई चुनौतियों का करना पड़ा सामना
रणजीत बताते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में कई चुनौतियां हैं, जिसमें लड़कियों की शिक्षा के आंकड़े अभी भी अच्छे नहीं हैं। कोरोना महामारी में बच्चो के स्कूल छुटने की समस्या और भी ज्यादा बढ़ गई। रणजीत कहते हैं कि इस समस्या का हम सब को मिल कर सामना करना चाहिए।
The Logically रणजीत सिंह डिसले के कार्य की तारीफ करता है और उनकी कामयाबी के लिए उन्हें बधाई देता है।