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नेपाल में मिला सुनहरे रंग का दुर्लभ कछुआ, कुछ लोग इसे भगवान विष्णु का अवतार समझ पूजा कर रहे हैं

आपने अक्सर ही मंदिरो में देखा होगा कि भगवान विष्णु को पीले रंग के वस्त्र व फूलों से सजाया जाता है। आरंभ से ही हिंदु धर्म में पीले रंग को विष्णु जी से जोड़कर देखा गया है क्योंकि श्री हरि को पीला रंग अत्यंत प्रिय है। यही एक कारण है कि पीले रंग की वस्तुओं अथवा पीले रंग के जीव को भी अक्सर ईष्ट देव विष्णु के रुप में पूजा जाता है।

गत वर्ष नेपाल के धनुषा जिले की धनुषाधाम म्यूनिसिपैलिटी (Dhnaushdham Municipality in Dhanusha District- Nepal) द्वारा सुनहरे रंग के कछुए (Golden Turtle) की खोज की गई है, जिसे श्रृद्धालु भगवान विष्णु का एक अवतार मानते हुए उसकी भगवान की भांति पूजा कर रहे हैं।

Golden Turtle found in Nepal

भगवान विष्णु ने ब्रह्रांड को विनाश से बचाने हेतु कछुए का रुप धरा था

नेपाल टॉक्सिनोलॉजी एसोसिएशन (Nepal Toxinology Association)) के स्पेशलिस्ट और रेप्टाइल एक्सपर्ट कमल देवकोटा (Kamal Devkota) के मुताबिक – “नेपाल में सभी देवताओं में सबसे अधिक भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है, पौराणिक काल से ही यह माना जाता रहा है कि भगवान विष्णु ने ब्रह्रांड को विनाश होने से बचाया था, जिसके लिए उन्होंने कछुए का रुप धारण किया था, जिसमें कछुए के ऊपरी भाग को आकाश और निचले भाग को धरती के सांकेतिक रुप में देखा गया है”

वीडियो में देखें गोल्डेन कछुए को

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नेपाल में पीले कछुए की खोज को श्रृदालु धार्मिक दृष्टिकोण से देख रहे हैं

कमल देवकोटा के अनुसार – “नेपाल में रेंगने वाले जीवों का अपना एक धार्मिक महत्व होता है, साथ ही कछुए को सदा से धर्म ग्रंथों से जोड़कर देखा गया है, युगों से ही इसे लेकर कई धार्मिक व सांस्कृतिक मान्यताएं रही है, ऐसे में सुनहरे कछुए के मिलने पर लोग इसे पवित्र नज़रिये से देख रहे हैं और इसकी पूजा कर रहे हैं”

जेनेटिक म्यूटेशन बताई जा रही है कछुए के पीले रंग की वजह

वहीं दूसरी ओर, नेपाल टॉक्सिनोलॉजी एसोसिएशन के अधिकारी का कहना है कि – “नेपाल में पीले कछुए का मिलना ‘क्रोमेटिक ल्यूसिज़म’(Chromatic Lucism) का पहला और दुनिया का केवल पांचवा मामला है, जो वाकई एक अस्वाभाविक खोज है। ‘क्रोमेटिक ल्यूसिज़म’ वह अवस्था होती है, जब शरीर को रंग देने वाले तत्वों में भीतरी गडबड़ी हो जाती है, और त्वचा पर सफेद, हल्के पीले रंग के चकत्ते पड़ने लगते हैं, नेपाल में मिले इस कछुए पर पीला रंग कुछ अधिक हावी हुआ और यह सुनहरा दिखने लगा। कछुए के इस सुनहरे दुर्लभ रंग की वजह जेनेटिक म्यूटेशन है, जिसके कारण शरीर को रंग देने वाला पिगमेंट बदलने लगता है, नतीजतन जीव सुनहरा दिखने लगता है,”

अर्चना झा दिल्ली की रहने वाली हैं, पत्रकारिता में रुचि होने के कारण अर्चना जामिया यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और अब पत्रकारिता में अपनी हुनर आज़मा रही हैं। पत्रकारिता के अलावा अर्चना को ब्लॉगिंग और डॉक्यूमेंट्री में भी खास रुचि है, जिसके लिए वह अलग अलग प्रोजेक्ट पर काम करती रहती हैं।

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