अगर इंसान अपनी राह बनाना चाहे तो वह किसी भी तरह बना सकता है। चाहे यह रास्ता पहाड़ों को तोड़कर बनाना हो या फिर नहरों को। आधुनिक युग में जैविक खेती का प्रचलन बढ़ रहा है। सभी व्यक्ति कोशिश करतें है कि वे खेती के नए-नए गुर सीखें और तब खेती करें। आज की यह कहानी राजस्थान के एक महिला की है जो मरुस्थल में जैविक खेती कर सबके लिए उदाहरण बनीं हैं। इनकी इस मरुस्थल की खेती से वार्षिक आमदनी 30 लाख तक है। इनकी तारीफ वहां के मुख्यमंत्री ने भी की है। तो चलिए पढतें हैं फिर इनके बारे में विस्तार से।
यह हैं संतोष देवी खेदड़
संतोष देवी खेदड़ (Santosh Devi Khedad) राजस्थान (Rajasthan) से ताल्लुक रखतीं हैं। इनका जन्म 1974 में 25 जून को हुआ। इनके पिता पुलिस की नौकरी किया करतें थे। इनके पास 20 बीघा जमीन थी जहां ये सब खेती करतें थे। इन्होंने जो भी कार्य किया है वह अपनी मर्ज़ी से अपने मन की बातों को सुनकर ही किया है। बचपन से ही इन्हें खेतों से लगाव था। इन्होंने अपनी पांचवी कक्षा तक की शिक्षा दिल्ली से प्राप्त की। उसके बाद अपने गांव आकर अपने घर वालों के साथ रहने लगी। फिर इन्होंने 10वीं कक्षा की पढ़ाई सम्पन्न की। घर आकर यह खेती के गुण सीखने लगी। जब यह मात्र 12 साल की थी तब से ही यह खेती के बारे में सब कुछ ध्यान से सीखना शुरू कर दी थी। इन्हें शहरों में रहना पसंद नहीं था और ना ही वहां रहकर पढ़ाई करना करना चाहती थी। इनका तो मन सिर्फ और सिर्फ खेती में ही लगता था। इसीलिए इन्होंने खेत का कार्य शुरू किया।
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खेती की शुरुआत
संतोष का बचपन से ही खेती से लगाव था लेकिन वर्ष 2008 में इन्होंने खेती की शुरुआत की। इनके पति का नाम रामचरण खेदड़ है जो कि होमगार्ड की नौकरी कर अपना जीवन यापन करते थे। इनके पति जहां नौकरी कर रहे थे, वहां अत्यधिक मात्रा में अनार के पौधे थे। फिर इन्होंने निश्चय किया कि क्यों ना हम दोनों पति-पत्नी मिलकर इस कार्य को अपनाएं और अनार की खेती करें।
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कठिन रहा सफर
संतोष के लिए ऐसी खेती को अपनाने का सफर इतना आसान नहीं था। हम इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि ठंडे प्रदेशों में ही अनार या सेब की खेती की जाती है और संतोष जिस एरिया में रह रही थी, वह मरुस्थलीय क्षेत्र था। लेकिन इनके मन में बस एक ही लक्ष्य था कि किसी भी तरह घर की आर्थिक स्थिति को यह बेहतर बना सकें। इनके पति जो होमगार्ड की नौकरी किया करते थे उससे उन्हें मात्र 3 हज़ार रुपये मिलता था जिससे जीवन-यापन करना थोड़ा मुश्किल हो गया था। 3 हज़ार में 3 बच्चों और पति-पत्नी के लिए सारी चीजों की आपूर्ति नहीं हो पा रही थी। मुश्किलें थोड़ी और बढ़ गई जब इनके घर का बंटवारा हुआ। यह साल 2008 था जब उनके घर का बंटवारा हुआ। इनके हिस्से में मात्र ढेड़ एकड़ भूमि मिली। तब इन्होंने सोचा कि कुछ ना कुछ तो ऐसा करना ही पड़ेगा जिससे हमारे घर की आर्थिक स्थिति सुधर सके। तब इन्होंने अनार की खेती का निश्चय किया और इसके लिए उन्होंने अपनी भैंस बेच दीं ताकि उस समय पैसे की जरूरत पूरी हो सके।
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कृषि फार्म के जरिए किसानों को देतीं हैं प्रशिक्षण
संतोष का एक कृषि फार्म भी है, जहां वह लोगों को कैसे खेती करनी है और खेती में किस चीज का इस्तेमाल, किस तरह करना है। इन सब बातों का प्रशिक्षण देती है। संतोष यह भी प्रशिक्षण देती है कि किसानों को मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए कैसे काम करना चाहिए। किस तरह अधिक पैदावार कर मुनाफा कमाया जा सकता है। संतोष को लोगों की सहायता करना बहुत ही अच्छा लगता है। इसीलिए इनके फॉर्म में प्रतिदिन जो 15-20 किसान सीखने के लिए आते हैं। उनके लिए खाना अपने हाथों से बनातीं हैं। इन्होंने अपने फॉर्म में लोगों के आराम के लिए भी व्यवस्था कर रखी है।
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बेटी की शादी में दियें अनार के पौधे
हमारे यहां बेटियों के शादी के समय लोग दहेज के रूप में पैसे और ऐश-ओ-आराम की चीजें लेते हैं। लेकिन संतोष ने ऐसा कुछ नहीं किया। इन्होंने अपनी बेटी की शादी में ये सभी चीजें और फर्नीचर आदि ना देकर, अनार के 500 पौधे दियें। जो व्यक्ति वर पक्ष की तरफ से आए थे उन लोगों को भी इन्होंने अनार के 2-2 पौधे भेंट स्वरूप दियें।
मिलें हैं सम्मान
मरुस्थलीय क्षेत्रों में नई तकनीक को अपनाकर खेती करने के लिए इन्हें “कृषि मंत्रालय और राजस्थान सरकार” ने पुरस्कार के तौर पर 1 लाख रुपये की राशि दी हैं। साथ ही राजस्थान के Chief Minister और भारत के उपराष्ट्रपति ने संतोष को ऑर्गेनिक खेती के माध्यम से अधिक पैदावार के लिए भी पुरस्कार दिए हैं। इतना ही नहीं संतोष को Udaypur और Bikaner में भी पुरस्कार मिले हैं।
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अपनी लगन और मेहनत से घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के साथ मरुस्थलीय क्षेत्र में ऑर्गेनिक विधि से अनार उगाने और अन्य लोगों को भी यह सिखाने के लिए The Logically संतोष को सलाम करता है।
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