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लद्दाख में जल समस्या को हल करने के लिए डॉ. सोनम वांगचुक ने आइस स्तूप नामक कृत्रिम ग्लेशियर बना दिया है

जम्मू और कश्मीर का लद्दाख क्षेत्र पूरी तरह बर्फ से ढ़का हुआ एक शुष्क क्षेत्र है। पठार क्षेत्र होने के कारण यहां जीवन जीना काफी मुश्किल है इसी के चलते लद्दाख को पहाड़ों का रेगिस्तान भी कहा जाता है। जलवायु परिवर्तन नें लद्दाख के ठंड़े और शुष्क क्षेत्र में पानी के प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता को भी प्रभावित करना शुरु कर दिया है। जिसका परिणाम यह हुआ है कि लद्दाख में विशेषकर किसानों को सर्दियों के वक्त जमी हुई नदियों और बर्फबारी से पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में एक मैकेनिकल इंजीनियर और शिक्षाविद्(educationist) सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) नें अपने कौशल और दृढ़ संकल्प के ज़रिये इस क्षेत्र में पानी के स्रोतों को पुर्नजीवित(revive) कर दिया है।

वागंचुक नें कृत्रिम ग्लेशियर आइस स्तूप(Artificial Glaciers ‘Ice Stupa’) का किया निर्माण

लद्दाख क्षेत्र में पानी की कमी के मद्देनज़र सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) और उनकी टीम ने मिलकर कृत्रिम ग्लेशियर प्रोजेक्ट आइस स्तूप(Ice Stupa) का निर्माण किया है जिसके ज़रिये सर्दियों में इकठ्ठा किये गये पानी से आर्टिफिशियल ग्लेशियर बनाकर उनसे किसानों को वसंत श्रृतु में सिंचाई के लिए पानी प्राप्त हो सकेगा। लद्दाख में ये कृत्रिम ग्लेशियर जल संरक्षण का एक अनूठा तरीका साबित हो रहे हैं।

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कैसे काम करेगा कृत्रिम ग्लेशियर आइस स्तूप(Ice Stupa)

डॉ. सोनम वागंचुक ने ये महसूस किया कि इसका कारण ग्लेशियरों का क्षेत्रफल चौड़ा होना है जिसके कारण ज़्यादा धूप पड़ने से ये ग्लेशियर जल्दी पिघल जाते हैं। अतः सोनम ने इन्हें एक स्तूप या पिरामिड का रुप दिया जिस वजह से आइस स्तूप(Ice Stupa) कहे जाते हैं। जो कि समुद्रतल से लगभग 4,000 मीटर की ऊंचाई पर होते हैं। सूरज से छाया हेतु इन्हें निरतंर देख-रेख की ज़रुरत होती है। ये स्रोत पानी को प्रवाहित करते हैं और पूरे सर्दियों नदियों में पानी की आपूर्ति करते हैं।

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एक अन्य मॉडल पर भी काम कर रहे हैं सोनम

सोनम ने एक ऐसा मॉडल भी तैयार किया है जिसपर ऊंचाई (altitude) और सूर्य की गर्मी का असर नही पड़ता है। इस मॉडल द्वारा विशाल हिम पिण्डों या ऊंचाई में 30 से 50 मीटर की उंचाई के रुप में धारा के पानी को स्थिर रुप देकर कृत्रिम ग्लेशियर बनाया गया है।

स्थानीय पवित्र संरचनाओ से मिलते-जुलते हैं ये स्तूप

ये स्तूप स्थानीय पवित्र संरचनाओं से मिलते-जुलते हैं जो कि मिट्टी से बनाई जाती हैं जिन्हें चार्टेन(charten) कहा जाता है। Ice Stupa प्रोजेक्ट के अनुसार ये बर्फ के पहाड़ गांव के बगल में बनानें उपयुक्त रहते हैं जहां पानी कम होता है। टीम के मुताबिक – इस नये प्रोजेक्ट में अभी प्रयास और निवेश की आवश्यकता है। साथ ही गांव के बाहरी इलाके में एक उच्च बिंदु से एक भूमिगत पाइपलाइन(underground pipeline) बिछाने की भी जरुरत है।

डा. वागंचुक और उनकी टीम द्वारा बनाया गया Ice Stupa प्रोजेक्ट जल संरक्षण के लिए बर्फ के टावर का संरक्षण भी करेगा, जिससे यह गर्मियों तक स्थायी रहे। ऐसा तब तक रहेगा जब तक जून महीना आने पर असली ग्लेशियर पिघलना शुरु न कर दें।

कौन हैं सोनम वांगचुक

1 सितंबर 1966 में लद्दाख मं जन्में सोनम वांगचुक एक मैकेनिकल इंजीनियर और शिक्षाविद् भी हैं उन्होनें अपने क्षेत्र के विकास के लिए स्वंय को समर्पित कर दिया है। सोनम न केवल क्षेत्र की जल समस्या को हल करने के लिए Ice Stupa प्रोजेक्ट लेकर आये हैं बल्कि पूर्व में उन्होनें शिक्षा व्यवस्था में भी कई सकारात्मक बदलाव किये हैं । सोनम नें सेकमोल(SECMOL) नामक एक स्कूल की भी स्थापना की जिसका उद्देश्य विधार्थियों को उनकी अपनी भाषा में व्यवहारिक शिक्षा देना था।

Ice Stupa प्रोजेक्ट के लिए सोनम हुए हैं सम्मानित

जल संरक्षण के लिये बनाए गये Ice Stupa प्रोजेक्ट के लिए सोनम को नवंबर 2016 में ROLLEX AWARD से नवाज़ा गया था जिसमें प्राप्त धनराशि को भी सोनम नें क्षेत्र के विकास के लिए खर्च कर दिया था।

अर्चना झा दिल्ली की रहने वाली हैं, पत्रकारिता में रुचि होने के कारण अर्चना जामिया यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और अब पत्रकारिता में अपनी हुनर आज़मा रही हैं। पत्रकारिता के अलावा अर्चना को ब्लॉगिंग और डॉक्यूमेंट्री में भी खास रुचि है, जिसके लिए वह अलग अलग प्रोजेक्ट पर काम करती रहती हैं।

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