किसी ने सही कहा है ,आपके सपने हमेशा बड़े होने चाहिए। और यह भी बिल्कुल सही कहा गया है कि सपने देखना ही है तो बंद आंखों से नहीं खुली आंखों से देखें ताकि उसकी सफलता की खुशी आपके जीवन में चार चांद लगा दे। आज हम आपको एक ऐसे युवक के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने आत्मनिर्भर बनने का सपना देखा और आज लाखों लोगों के लिए उदाहरण बन चुके हैं। उनका नाम है सुनील वशिष्ट।
कौन हैं सुनील वशिष्ट(Sunil Vashist)
सुनील दिल्ली के रहने वाले हैं। शुरुआती शिक्षा की बात करें तो, एक साधारण परिवार से होने के कारण उन्होंने मात्र 12वीं तक पढ़ाई किया। घर के हालात ठीक न होने के कारण उन्होंने कम उम्र में ही पार्ट टाइम जॉब शुरू कर दिया था। तंगी हालात के कारण ऐसा भी हुआ कि उन्होंने शादियों में जाकर वेटर का काम भी किया। खैर किसी काम को छोटा या बड़ा कहना हमारे हिस्से की बात नहीं है, लेकिन उस काम को करते करते बड़े सपने देखना और उसे पूरा कर देना बहुत ही सराहनीय है।
उस वक्त मात्र एक ही लक्ष्य था….. पैसा कमाना
जब जेब में पैसे ना हों और दो वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से मिलती हो तो इंसान की सबसे बड़ी जरूरत खुद का भूख मिटाना ही होता है और ऐसा ही कुछ सुनील के साथ भी हुआ । जिस उम्र में बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बनने के सपने देखते हैं उस वक्त सुनील के दिमाग में बस यह चलता था कि कैसे पैसा कमाया जाए और परिवार को संभाला जाए l
कहीं ना कहीं पार्ट टाइम जॉब से उन्हें संतुष्टि नहीं मिल रही थी क्योंकि कोई भी काम व्यवस्थित ढंग से नही हो पाता था! आगे चलकर उन्हें एक कुरियर एजेंसी में काम मिल गया। अब इस काम में उन्हें एक व्यवस्था दिख रही थी और उन्होंने जमकर मेहनत किया।
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डोमिनोज से हुई शुरुआत, इंटरव्यू से दो बार रिजेक्ट कर दिए गए फिर भी नहीं हारी हिम्मत
सुनील वशिष्ट(Sunil Vashist) डोमिनोज पिज़्ज़ा का एक हिस्सा बनना चाहते थे.उन्होंने तीन बार पूरी शिद्दत से उसमें काम के लिए आवेदन डाला। हालांकि इनके पास अच्छी शिक्षा नहीं थी जिसके कारण इन्हें लोग चयनित नहीं करते थे। शिक्षा के अलावा अंग्रेजी भी बहुत बड़ी चुनौती थी जिसकी वजह से इन्हें नौकरी में नहीं लिया जाता था। लेकिन कहते हैं ना कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती और जिस काम पर दिल और दिमाग दोनों लग जाए वह तो मिलना ही है।
तीसरी बार में हुआ डोमिनोज में चयन
आपको बता दें कि 2 बार रिजेक्ट होने के बाद भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और तीसरी बार भी वह काम मांगने के लिए डोमिनोज़ पहुंच गए । वहां के लोग इनके प्रयास को देखकर काफी आश्चर्य में थे कि, आखिर कोई इंसान किसी कंपनी या फिर किसी दुकान के काम के लिए इतना तत्पर क्यों है। इनकी तत्परता और इनके सच्ची लगन ने इन्हें नौकरी दिला दी। अब वह डोमिनोज के एक सदस्य बन चुके थे।
अपनी कड़ी मेहनत और इमानदारी से मिला कई प्रमोशन
सुनील ने डोमिनोज में जी जान से काम किया। धीरे-धीरे उन्हें एक डिलीवरी ब्वॉय से आगे का पद मिलता गया। पहले वह मात्र एक डिलीवरी बॉय थे उसके बाद आगे चलकर उन्हें 2 साल के बाद जूनियर मैनेजर बनाया गया और यही नही, आगे चलकर उन्हें और भी ऊंचा पद मिला।
इसी दौरान सन 2000 में सुनील की शादी हो गई और दो-तीन साल के बाद 2003 में उनकी पत्नी मां बनने वाली थी। स्वास्थ्य सही नहीं होने के कारण उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया और उस वक्त सुनील को वहां पर जितनी जल्दी हो सके आने को कहा गया। सुनील ने अपने मैनेजर से बात किया और उनसे विनती की कि उन्हें अपने घर जाने दिया जाए।
सामर्थ्य होने के बाद भी नौकरी से निकाला गया
सुनील बताते हैं कि उन्होंने डोमिनोज़ के लिए अपना पूरा समय दिया और उसके तरक्की के बारे में लगातार सोचते थे। इतना समर्पण होने के बाद भी जब उन्हें जरूरत थी तो कंपनी से उन्हें छुट्टी नहीं मिल पाई। उस वक्त उन्हें अपनी पत्नी के पास जाना बहुत जरूरी था। ज्यादा कुछ सोचे बिना सुनील अपने घर वापस चले गए और अपना काम जूनियर मैनेजर को सौंप दिया। जब वह वापस आए तब उन्हें यह कहकर नौकरी से निकाल दिया गया कि उन्होंने परमिशन नहीं मांगा था।
फिर तय किया कि अब दूसरों के यहां नौकरी ना करके वह खुद आत्मनिर्भर बनेंगे
सुनील ने ये तय कर लिया कि अब वह किसी के अंडर काम नहीं करेंगे। अब वह जो करेंगे वह खुद से करेंगे और स्वतंत्र रूप से करेंगे। उन्होंने अब आगे कुछ बड़ा करने का निर्णय किया। समस्या और संघर्ष तो हर जगह पर है लेकिन आप किस तरीके से उसका सामना करते हैं और उस पर जीत हासिल करते हैं यह आप पर निर्भर करता है। सुनील ने मेहनत से आगे बहुत कुछ किया जो आपको कहानी के आगे बताएंगे l
उनकी बच्ची को ठहराया जाता था दोषी
बहुत दुख की बात है कि हम जिस समाज में रहते हैं वहां आप पर दोषारोपण करने के पहले लोग दूसरी बार नहीं सोचते हैं। सुनील ने अपनी नौकरी इसलिए छोड़ी थी क्योंकि उनकी वाइफ हॉस्पिटल में थी। उसके बाद उनकी बच्ची हुई। नौकरी छूटने के बाद लोग यही बोलते थे कि उस बच्ची के जन्म के साथ ही सुनील और उनके परिवार का बुरा समय शुरू हो गया ! सुनील जब भी यह बातें सुनते हैं उन्हें बहुत ही बुरा लगता कि कोई एक छोटे से बच्चे के बारे में ऐसा कैसे सोच सकता है। उन्होंने सोचा कि वह कुछ इतना बड़ा करेंगे जिससे लोगों में एक अच्छा मेसेज जाए साथ ही लोगों के मुंह पर एक जोर का तमाचा भी पड़े!
शुरू किये अपना स्टॉल
अब रोजी रोटी की तो बात हर जगह है। बात से तो पेट भरता नहीं है और इसके लिए जेब में पैसे होने भी बहुत जरूरी है। सुनील ने जवाहरलाल यूनिवर्सिटी के बाहर अपना एक फूड स्टॉल लगाया। उस फूड स्टॉल पर बच्चे आते थे और भीड़ भी अच्छी खासी होती थी। लेकिन लोगों को यह बात रास नहीं आई और उन्होंने कंप्लेंट कर दिया। मार्केट की तरफ से कंप्लेन जाने के बाद उनकी दुकान को वहां से हटा दिया गया और तोड़ दिया गया।
Flying Cakes की शुरुआत
The Logically से बात करते वक्त सुनील ने बताया कि, 2007 में उन्होंने पैसे इकट्ठे कर नोएडा में Flying Cakes के नाम से अपनी बेकरी शुरू की । शुरुआत में तो यह दुकान ज्यादा चली नहीं, कुछ लोग ही आते थे और बिक्री भी कम थी।
फिर भी उन्होंने कभी अपने मन को निराश नहीं होने दिया। यह संघर्ष डेढ़ साल तक लगातार चलता रहा। कभी बीवी के गहने बेचने पड़े तो कभी घर का कोई सामान बेचना पड़ा, लेकिन वह डटे रहे!
कुछ दिनों बाद धीरे-धीरे उनको अलग-अलग कंपनियों से कनेक्टिविटी मिली और वहां डिलीवरी देने का मौका मिला। किस्मत कब आपका साथ दे आपको नहीं पता चलेगा। लेकिन इतना तय है कि अगर आपके इरादे पक्के हैं और आपकी मेहनत सच्ची है तो दुनिया का कोई भी बुरा प्रभाव आपके काम को बर्बाद नहीं कर सकता।
आज पूरे भारत मे Flying Cakes के कुल 15 आउटलेट्स हैं- दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, पुणे, बिहार और अन्य जगहों पर इनके आउटलेट्स मिल जाएंगे
आज सुनील को ताज्जुब होता है कि अगर वह किसी कंपनी में भी रहते तो एक मैनेजर के पद पर काम कर रहे होते और एक छोटी सी सैलरी पर अपने जीवन को चलाते। आज वह कहते हैं कि वाकई में जो भी होता है अच्छे के लिए होता है और यहां से शुरू हो गई सफलता की कहानी l
100 से भी ज्यादा लोगों को दिया है रोजगार
सुनील ने पूरे भारत में 100 से भी ज्यादा लोगों को रोजगार दे रखा है। वह कहते हैं कि जिस तरीके से उन्हें प्रताड़ित किया गया और नौकरी से निकाल दिया गया, वह उन सभी अनुभवों से सीख लेकर अपने यहां के काम करने वाले लोगों को बहुत ही प्रेम पूर्वक रखते हैं।
अब Flying Cakes केवल नौकरी ही नहीं जीवन संवारने का भी काम करता है
सुनील कहते हैं कि जरूरी नहीं कि आप बहुत पढ़े लिखे हों, तभी आपको एक अच्छी खासी सैलरी मिलती हो। उनका कहना है कि यहां बहुत सारे बच्चे भी आते हैं जो बहुत कुछ सीख जाते हैं। उन्होंने बात-बात में एक बच्चे के बारे में बताया कि वह पहले उनके शॉप्स पर झाड़ू पोछा करने का काम करता था। लेकिन उसमें उन्होंने हुनर देखा और उसे ट्रेनिंग दी और आज वह 35,000 का महीना इसी शॉप से लेता है। शायद सही मायने में इसे ही आत्मनिर्भर कहा जाता है।
आज Flying Cakes में 60 से भी अधिक प्रोडक्ट्स बनते हैं
Flying cakes में आपको पिज़्ज़ा बर्गर पेस्ट्रीज और कई तरीके के सामान मिलेंगे जिन्हें उचित मूल्य पर बेचा जाता है!
गरीब बच्चों को या उनके परिवार को दिया जाता है विशेष छूट
Flying cakes में आपको केक के शुरुआती राशि 600 से ₹650 तक देखने को मिलेगी। लेकिन हर एक शॉप के मैनेजर को यह निर्देश दिया गया है कि यदि कोई गरीब इंसान या मजदूर या फिर कोई ऐसा व्यक्ति आता है जो पैसे देने में असमर्थ होता है उसे कम से कम 50% की छूट दी जानी चाहिए। वह नहीं चाहते हैं कि कोई बच्चा पैसे के अभाव में इनके द्वारा बनाये प्रोडक्ट न खा पाए।
25 लाख से भी ज्यादा लोग ले चुके हैं सेवा
आपको यह जानकर बहुत ही ज्यादा खुशी होगी कि इस शॉप से लगभग 25 लाख लोग जुड़ चुके हैं और यहां के प्रोडक्ट्स को चख चुके हैं। एक इंटर पास लड़का जो पैसा कमाने के लिए शादियों में वेटर का काम करता था आज उसने एक इतनी बड़ी चेन का निर्माण कर दिया जो अद्भुत है और प्रेरणादायक भी है।
सुनील चाहते हैं कि 2025 तक Flying Cakes के 100 से भी अधिक ब्रांच खोले जाए । हालांकि कोरोना के कारण बहुत ही ज्यादा व्यवसाय में हानि भी हुई लेकिन इन सब को दरकिनार कर वह चाहते हैं कि भविष्य में वह भारत का सबसे बड़ा बेकरी ब्रांड स्थापित करें!
The Logically सुनील वशिष्ट(Sunil Vashist) के इस अद्भुत और प्रेरणादायी सफर को सलाम करता है और आशा करता है कि, पाठक इससे प्रेरणा लेकर अपने जीवन में भी एक बड़ा लक्ष्य बनाएंगे और उसे हासिल करेंगे।
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