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सुप्रीम कोर्ट ने तीन कृषि कानूनों पर फिलहाल लगाई ब्रेक: अब जानिए आगे क्या होगा

हम सभी को कृषि कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बेसब्री से इंतजार था जो अब खत्म हो गया है। बीते वर्ष के सितंबर महीने में संसद से सरकार ने तीन कृषि कानून बिल पास कराया था, जिस पर 22 से 24 सितम्बर के बीच राष्ट्रपति ने कानूनों पर मुहर लगा दिया। किसान इन कानूनों ने खिलाफ प्रदर्शन करना शुरू किए जो अब तक चल रहा है। कुछ वकीलों ने भी कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसके बाद अब SC का फैसला आ गया है।

तीन कृषि कानून पर साढ़े तीन महीने बाद ब्रेक लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर रोक लगाकर चार सदस्यों की एक कमेटी बनाई है, जिसमें कोई रिटायर्ड जज शामिल नहीं हैं। यह कमेटी इस नए कानून पर किसानों से बातचीत करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 10 दिनों के अंदर कमेटी बैठक करे तथा 2 माह बाद अपनी सिफारिशें पेश करे।

Farmer protest

सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई हुई कमेटी में शामिल सदस्य

  • भूपेंद्र सिंह मान, भारतीय किसान यूनियन
  • डॉ प्रमोद कुमार जोशी, इंटरनेशनल पॉलिसी हेड
  • अशोक गुलाटी, एग्रीकल्चर इकोनोमिस्ट
  • अनिल घनवट, शेतकरी संघटना, महाराष्ट्र

किसान कृषि कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उस पर दिए अपने फैसले में कानुनों को रद्द करने की बात नहीं कही है बल्कि उसके अमल को कुछ समय के लिए रोका है। किसान किसी प्रकार की कमेटी नहीं चाहते थे लेकिन SC ने इस मुद्दे को बातचीत से सुझाने हेतु कमेटी बनाया है।

सरकार के लिए यह हार नहीं हैं क्यूंकि वह चाहती थी कि कमिटी बने और उसके माध्यम से बातचीत हो। सरकार द्वारा बनाए कानूनों की संवैधानिक विधता भी कायम है, क्यूंकि SC ने उस पर कुछ नहीं कहा है। इसके साथ हीं अदालत ने यह भी साफ किया है कि कानूनों के अमल पर बेमियादी नहीं होगी।

कमेटी क्या करेगी?

कमेटी किसानों से बातचीत करेगी लेकिन वह कोई फैसला या आदेश नहीं देगी। यह संभव है कि सरकार को भी अपना पक्ष रखने का मौका मिलेगा। कमेटी के पास कितने दिन का समय होगा, यह अभी साफ नहीं है। यह कमेटी सुप्रीम कोर्ट को अपना रिपोर्ट सौंपेगी।

आंदोलन कर रहे 40 संगठनों के संयुक्त सचिव मोर्चा का कहना है कि हम किसी कमेटी के सामने नहीं जाना चाहते, लेकिन फिर भी एक बैठक करके इस पर फैसला लेंगे और हमारा प्रदर्शन जारी रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठन से यह कहा है कि यदि वे रामलीला मैदान या किसी दूसरे जगह प्रदर्शन करना चाहते हैं तो इसके लिए दिल्ली पुलिस कमिश्नर से अनुमति लेनी होगी, यदि इजाजत मिलती है तो आंदोलन की जगह बदली जा सकती है।

किसानों के द्वारा यह कहा गया था कि गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर परेड निकालेंगे और दिल्ली की सड़कों पर 2 हजार ट्रैक्टर दौङाएंगे। इस बारे में दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाकर कहा है कि प्रदर्शन करने का अधिकार होने का यह अर्थ नहीं है कि दुनिया के सामने भारत की छवि को खराब किया जाए। जिसके बाद इस मामले पर भी सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने की उम्मीद है।

यह भी पढ़ें :- कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, ”जब सुप्रीम कोर्ट ने कानून के अमल पर रोक लगा दी है, तब किसान धरने पर क्यों हैं?

किसानों के नामंजूरी पर SC की हिदायत

ML. Sharma: कृषकों ने अदालत द्वारा बनाई कमेटी के सामने आने से इंकार कर दिया है।

चीफ जस्टिस ने कहा कि कमेटी तस्वीर को साफ तौर पर समझ सके इसके लिए बनेगी। हम यह दलील नहीं सुनना चाहते हैं कि किसान इस कमेटी के सामने पेश नहीं होंगे। यदि किसान बेमियादी आंदोलन करना चाहते हैं तो करें लेकिन जो भी व्यक्ति मसले का समाधान चाहेगा, वह कमेटी के पास जायेगा। यह राजनीति नहीं है और आपको सहयोग करना होगा।

कमेटी कोई भी आदेश नहीं देगी

मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि हम कानूनों के अमल को निलंबित करना चाहते हैं, लेकिन बेमियादी तौर पर नहीं। हमें कमेटी में विश्वास है और हम इसे बनाएंगे। यह कमेटी न्यायिक प्रक्रिया का भाग होगा। कमेटी किसी को भी न सजा सुनाएगी और ना हीं कोई आदेश जारी करेगी, वह सिर्फ हमें रिपोर्ट सौंपेगी।

ML. Sharma : किसान कह रहे हैं कई लोग चर्चा करने आए, लेकिन प्रधानमंत्री नहीं आए जो मुख्य व्यक्ति हैं।

इस सवाल पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम प्रधानमंत्री से बैठक में जाने को नहीं कह सकते हैं, प्रधानमंत्री के दूसरे ऑफिशियल्स यहां पर उपस्थित हैं।

ML. Sharma ने कहा कि नए कृषि कानूनों के तहत यदि किसान कोई अनुबंध करेगा तो उसकी जमीन बेची जा सकती है, यह मास्टरमाइंड प्लान है। कॉर्पोरेट्स किसानों के उत्पादन को खराब बता देंगे और हर्जाना भरने के लिए किसानों को अपनी जमीन बेचनी पड़ेगी।

इस बात पर मुख्य न्यायधीश ने कहा कि हम अंतरिम आदेश जारी करेंगे, कॉन्ट्रैक्ट करते समय किसी भी किसान की भूमि नहीं बेची जायेगी।

एपी सिंह ने कहा कि किसानों ने कहा कि वे महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग को वापस घर भेजने के लिये तैयार हैं।

इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम रिकॉर्ड में लेकर इस बात की तारिफ करना चाहते हैं।

केके वेनुगोपाल (अटॉर्नी जनरल) के द्वारा कहा गया कि 25 जनवरी को यदि किसानों को आने की अनुमति दी गई तो वे कहां आएंगे कोई नहीं जानता। इस बात पर चीफ जस्टिस ने कहा कि पुलिस आपकी है, शहर में प्रवेश पर निर्णय पुलिस को करना है, उनका अधिकार है कि वह जांच करें कि किसी के पास औजार तो नहीं है।

चीफ जस्टिस : एक आवेदन में कहा गया है कि एक प्रतिबंधित संगठन किसान आंदोलन में सहायता कर रहा है। इसे अटॉर्नी जनरल मानते है या नहीं।

इस बात पर केके वेनुगोपाल (अटॉर्नी जनरल) : हम कह चुके है कि आंदोलन में खालिस्तानियों की घुसपैठ हो चुकी है।

वक्त के साथ हीं इस मुद्दे पर तथ्य निकलकर सामने आएंगे। The Logically उम्मीद करता है कि फैसला किसानों के पक्ष में आएगा।

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