यूं तो हमारे समाज में केई तरह के भेदभाव मौजूद हैं। अगर कोई व्यक्ति परिपूर्ण ना हो तो लोग उसे मोटीवेट नहीं करते बल्कि उसे नीचा दिखाते हैं। ऐसा ही लोग एक ट्रांसजेंडर के साथ करते है। प्रत्येक जगह पर उन।हमें ना सिर्फ हीं भावना से देखा जाता बल्कि उनकू साथ बर्ताव भी अच्छा नहीं होता। उनको बचपन से हीं अपने घर से दूर होना पड़ता है। यहां तक कि उनके माता-पिता भी यह जानने की कोशिश नहीं करते की वह किस हालात में है।
ट्रांसजेंडरों अपना जीवन-यापन करने के लिए सड़कों पर भीख मांगना पड़ता है। लेकिन कहा जाता है ना कि यदि किसी में काबिलियत हो तो वह निखर कर बाहर आता हीं है चाहे परिस्थितियां जैसी भी हो या फिर बाधाएं कैसी भी क्यूं ना आए। आज आपको एक ऐसे ट्रांसजेंडर के बारे में बता रहे हैं जो समाज के लाख तिरस्कार के बावजूद भी सफलता की कहानी लिखी और देश के पहले डेयरी फार्म के प्रमुख बने।
एक ट्रांसजेंडर को क्या कुछ नहीं झेलना पड़ता है। वह जन्म तो अपने ही घर में लेते है लेकिन उन्हें अपने घर और समाज दोनों से दूर एक अलग दुनिया बसाना पड़ता है। उन्हें कहीं अच्छी नौकरी नहीं मिलन्यी है जिसके कारण सड़कों पर भीख मांगना पड़ता है।
इसी बीच भूमिका (Bhumika) नाम की ट्रांसजेंडर को भारत के पहले डेयरी फार्म के प्रमुख के रूप में एक सुरक्षित भविष्य मिल गया है। राज्य समर्थित ट्रांसजेंडर्स मिल्क प्रोड्यूसर्स को ऑपरेटिव सोसाइटी ( Operative Society for State Supported Transgenders Milk Producers) ने पिछले महीने तमिलनाडु के दक्षिण राज्य में औपचारिक रूप से अपने दरवाजे खोले। इस एंटरप्राइज में 30 ट्रांस महिलाओं को रहने के लिए व्यक्तिगत निवास और एक गाय दी गई है।
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भूमिका (Bhumika) ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ( Thomson Reuters Foundation) को अपनी संघर्ष भरी कहानी बताते हुए कहा कि ‘मैंने पांच वर्षों तक ट्रेनों में भीख मांगी है। जीवन जीना बहुत ही कठिन था। पूरा समाज हमें एक गलत नजरिये से देखता था। आज हमलोग अपना एक डेयरी फार्म चलाते हैं और एक बेहतर जीवन जीते हैं। भले हीं आज भी लोग हमें ऐसे ही नजरों से देखते हैं।
एक दिन में लगभग 180 लीटर दूध बेचा जाता है। इस कार्य को करने का आईडिया संदीप नन्दूरी (Sndip Nanduri) का था। हलांकि संदीप ने इसे बनाने के लिए आवास, नौकरी और कोचिंग के लिए कई राज्य विभागों से बात की। जबकि 2014 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांस लोगों को ‘थर्ड जेंडर’ की मान्यता दी थी। जिसके कारण कंपनियों ने भी ट्रांस लोगों को काम पर रखा है और अधिक समावेशी नीतियों को अपनाया हैं। जैसे:- ‘यूनिसेक्स शौचालय’।
तूतूकुड़ी(Thoothukudi) जिले की प्रमुख कार्यकारी नन्दूरी ने कहा, वह समाजिक बहिष्कार का सामना करते हैं जिसके कारण हमने उनके आवासीय क्षेत्र के पास खेत को बचाया। नन्दूरी एक मशहूर ट्रांस एक्टिविस्ट ग्रेस बानू (Activist Grace Banu) के साथ काम कर चुकी हैं। वह 6 वर्षों से स्थानीय अधिकारियों से पैरवी कर रही थीं। उन्होंने इंजीनियर डिप्लोमा प्राप्त किया। अभी वह चेन्नई में एक सेल ऐप डेवलपर के रूप में कार्यरत हैं। बानू का कहना है कि हमारी सबसे बड़ी समस्या आवास की है। हम अगर किराये के घर पर रहें तो मालिक हमसे बुरा व्यवहार करते हैं और हम कुछ भी बोले तो वह हमें बिना किसी नोटिस के घर से जाने के लिए बोलते हैं।
नन्दूरी ने केवल एक साल में ही गाय खरीदने के लिए महिलाओं के लिए कर्ज की व्यवस्था किया। उन्होंने सरकारी एजेंसियों को सूचीबद्व किया जिन्होंने उन्हें खेती करने के लिए सिखाया। इसके बाद एक-एक कमरे वाले घरों की साफ-सुथरी लाइनों के साथ साईट पर पशु शेड का निर्माण किया।
बानू का कहना है कि ‘हमारे साथ आदर और सम्मान के साथ पेश आने वाले वह पहले व्यक्ति थे। जिन्होंने हमारी मांग को पूरा करने का प्रयास किया। इसी के कारण हमने अपनी हाउसिंग कॉलोनी का नाम इन्हीं के नाम पर रखा। इस कॉलोनी को हम संदीप नगर कहते हैं। इसके जरिए वह महीने के लगभग 8,000 रू. कमाते हैं। भूमिका का कहना है कि डेयरी फार्म में लगभग 60 गायें हैं जो हर दिन 8 से 11 लीटर दूध देती हैं। एक दिन में लगभग 300 ली. दूध की ख़रीदारी होती है और प्रत्येक महिला एक दिन में लगभग 250 रू. कमाती हैं।
भूमिका का कहना है कि इस व्यवसाय की वजह से हम बहुत गर्व महसूस करते हैं। हम सभी ने इस काम पर भरोसा किया और हम इस विश्वास को कभी तोड़ना नहीं चाहते है।
The Logically संदीप और सभी ट्रांसजेंडरो को बहुत बहुत बधाईयां देता है साथ हीं इस पहल की खूब सराहना करता है।