किसी ने बहुत ही खुबसूरत बात कही है, “बिना संघर्ष के कोई महान नहीं बनता, पत्थर पर जब तक चोट ना पड़े, तब तक पत्थर भी भगवान नहीं बनता है।” सफलता प्राप्त करने के रास्तों में बहुत सारी चुनौतियां आती है, लेकिन उन चुनौतियों से बिना हार माने जो उसका सामना करता है, वही अपने लक्ष्य तक पहुंचता है।
आज की हमारी कहानी एक लड़की के संघर्ष की ऐसी कहानी है जिसे पढ़कर आप भी कह उठेंगे कि मंजिल पाने वाले कैसे भी अपनी मंजिल प्राप्ति कर ही लेते हैं, उनके लिये दुनिया की कोई भी चुनौती राह मे बाधा उत्पन्न नहीं कर सकती। आइये जानते है आज की कहानी..
एक पैर से तय किया 3800 किमी का सफर, बनी पहली महिला साइक्लिस्ट
मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की बेटी तान्या डागा (Tanya Daga) ने एक पैर से साइकिल चलाकर जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक 3800 किमी की यात्रा तय कर इतिहास रच दिया है।
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तान्या ने 19 नवंबर 2020 से अपनी इस यात्रा की शुरुआत की और 31 दिसंबर 2020 को पूरी हुईं। वह इस कार्य को करनेवाली पहली महिला पैरा साइक्लिस्ट बनी है। तान्या अपना एक पैर गवां चुकी है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में कार की टक्कर लगने से उनका एक पैर कट गया। पैर कटने के बाद से तान्या की दो सर्जरी भी हुईं है।
कभी हार नहीं मानी
तान्या ने बताया कि सर्जरी के दौरान डॉक्टर उन्हें जिंदा होने की गारंटी भी नहीं दे पा रहे थे, लेकिन इन सब के बावजूद तान्या ने हार नहीं मानी। फिर तान्या का इलाज देहरादून और इंदौर से दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया, वहां 6 माह तक उनका इलाज चला। प्रत्येक सर्जरी पर उन्हें लगभग 3,000 टांके आते थे। उन्होनें इस चुनौती भरे समय के सफर को तय करने के बाद आदित्य मेहता फाउंडेशन से जुड़ कर पैर से साइकिलिंग करने की शुरुआत की।
तान्या बताती हैं कि उनके लिए साइकिलिंग करना बहुत कठिन कार्य था परंतु वह बिना हार माने आगे बढ़ती रही। बीएसएफ के द्वारा कश्मीर से कन्याकुमारी तक इंफिनिटी राइट साइकिलिंग का आयोजन किया गया, जिनमें 30 साइक्लिस्ट में से 9 पैरा साइक्लिलिस्ट थे। इतनी लंबी दूरी तय करने के बाद बीएसएफ द्वारा तान्या डागा को सम्मानित भी किया गया।
तान्या डागा ने अपना पैर गंवाने के बाद भी अपनी हिम्मत नहीं खोई। The Logically तान्या डागा के इस हिम्मत और जज्बे को शत शत नमन करता है।