आए दिन हम सभी को किसी न किसी चुनौती का सामना करना पड़ता है और चुनौती में अक्सर एक अवसर छिपा होता है, बस ज़रूरी है की आप उस अवसर को कैसे समझते हैं।
जो व्यक्ती इस अवसर को पहचान लेता है वह अपने और अपनी किस्मत को उसी के हिसाब से बदल देता है। चुनौतियों में अक्सर लोग हार मान जाते हैं, पर चुनौति में अवसर पहचानने की कला बहुत लोगों के अंदर होती है।
ऐसी ही कला को पहचानने वाले एक शख्स बिभू साहू हैं, जिसने ना केवल चुनौती को अवसर का नाम दिया साथ ही साथ अपने लिए सफलता के नए रास्ते खोल भी दिए। आपको सुनकर हैरानी होगी बिभू ने बेकार चावलों की भूसी से 20 लाख रूपये कमाकर सभी को अचंभित कर दिया है।
बिभू साहू के सफलता का सफर
बिभू साहू ओडिशा के कालाहांडी के रहने वाले हैं। जहां हर साल करीबन 50 लाख से ज्यादा क्विंटल धान की खेती होती है, वो इसीलिए क्योंकि कालाहांडी ओडिशा में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। कालाहांडी दर्जनों पैरा ब्लोइंग कंपनियाँ हैं जो चावल का ट्रींटमेंट करती हैं। इसकी वजह से बड़े पैमाने पर भूसी का उत्पादन होता है।
वैसे तो बिभू साहू पेशे से एक शिक्षक है, लेकिन अपने धान का बिज़नेस करने के लिए उन्होंने अपनी नौकरी को त्याग दिया। उसके कुछ समय तक धान का बिज़नेस करने के बाद, साल 2014 में बिभू साहू ने चावल के मील का बिज़नेस करने की सोच उसी दिशा में अपने कदम बढ़ाए और इसे वो लगभग 2 वर्षों तक करते रहे।
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इस तरह चावल के भूसी में ढूंढे अवसर
जब बिभू ने चावल के मील का बिज़नेस शुरू किया तो उन्होंने ने देखा कि चावल के मीलों में काफी मात्रा में भूसी बनती है। जिसको लोग अक्सर खुले में जला दिया करते हैं और इसकी वजह से पर्यावरण को काफी नुकसान होता है। जिसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इस समस्या को देखते हुए बिभू ने सोचा क्यों न भूसी को भी किसी काम में इस्तेमाल किया जाए। इसके बाद बिभू ने चावल की भूसी को स्टील कंपनियों को एक्सपोर्ट करना शुरू कर दिया। जिससे कारण प्रतिवर्ष उन्हे 20 लाख रुपये से अधिक की कमाई होने लगी।
बिभू साहू अपनी इस सफल कहानी को बताते हुए कहते हैं कि जैसा कालाहांडी में धान का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है जिसकी वजह से यहां दर्जनों पैरा ब्लोइंग कंपनिया हैं। बिभू का कहना हैं की उनकी चावल की मिल में हर दिन करीब 3 टन से भी ज्यादा भूसी का उत्पादन होता है, जिसे अक्सर लोग जला या फेंक दिया करते हैं। इससे ये हमारे स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
लोगों की बढ़ती स्वास्थ बीमारियों की शिकायतों को देख बिभू ने इस पर रिसर्च करना शुरु किया। रिसर्च में उन्हें पता चला कि चावल की भूसी का इस्तेमाल स्टील बिज़नेस में एक थर्मल इन्सुलेटर के रूप में किया जा जाता है। जिसका बेहतर तरीके से प्रयोग किया जा सकता है।
इसके बाद बिभू ने अपने एक मित्र की स्टील कंपनी का दौरा किया और एक सैंपल के साथ अपने प्रस्ताव को रखा। लोगों ने बिभू के प्रस्ताव पर विचार विमर्श कर हामी भरी पर उनको भूसी पाउडर के रूप में चाहिए थी। काफी सोचने के बाद बिभू ने भूसी को पाउडर रूप में न बनाकर उसे गोलियों के रुप में बनाकर एक्सपोर्ट करने का फैसला किया।
शुरुआत में बिभू को काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्हें गोलियां बनानी नहीं आती थी। उन्होंने कई एक्सपर्ट से बात की लेकिन कोई नतीजा हाथ नहीं आया।
एक पल को तो बिभू हार मान कर बैठ गए। लेकिन उसी समय उनके एक स्टाफ ने उनसे कुछ समय मांगा और अपने साथ और चार लोगों को ले आए। जिनकी हेल्प से वो गोली बनाने में सफल हो पाए।
उसके बाद भी मंज़िल इतनी आसन नहीं थी, बिभू के पैलेट ,1 मिमी से 10 मिमी के आकार में थे और पैलेट को सही आकार देने में उन्हें कुछ हफ्ते का समय लगा।
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भूसी को गोलियों में बदलने के बाद
बिभू ने 2019 में सबसे पहले सऊदी अरब में पहली खेप भेजी थी और कंपनियों को उनका काम काफी पंसद आया। उसी साल, उन्होंने 100 टन पैलेट बेचकर 20 लाख रुपये कमाए।
बिभू साहू ने बेकार पड़ी भूसी को काले सोने में बदलकर एक सफल प्रयोग कर दिखाया। एक ओर जहां लोग थोड़ी सी प्रयास करने के बाद हार मान बैठ जाते हैं, वहीं बिभू हार न मानकर अपने क़दम बढ़ाते रहे और सफ़ल हुए। बिभू आज लाखों में कमाई कर रहे हैं। उनकी यह सफलता की कहानी हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) है।
The Logically के लिए इस लेख को मेघना ने लिखा है
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