आज के युग में अधिकतर लोग स्वयं के बारे में सोचते हैं। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति दूसरों के तकलीफ को अपना समझे और उनकी मदद के लिए आगे आए तो समझिए वह मानवता का मिसाल है। आज की हमारी यह कहानी ऐसे 2 शख्स की है जिनका पेशा है खेती करना परन्तु उन्होंने अपनी खेती वाली कई एकड़ जमीन दान कर दी ताकि गांव के बच्चों को शिक्षा मिले।
2 किसानों ने किया बेहद सराहनीय कार्य
वह दोनों शख्स भूपराम (Bhoopram) और तेजराम (Tejram) है। आज भले ही वह इस दुनिया में नहीं है परंतु उनके द्वारा किए गये कार्य से शिक्षित होकर लोग सफल इंसान बन रहे हैं। यह दोनों शाहजहांपुर जिले के शिवदासपुर गांव से ताल्लुक रखते थे। भूपाराम के पास लगभग 10 बीघा जमीन थी उन्होंने इसे दान कर दी ताकि गांव के बच्चे शिक्षित हो सके। क्योंकि इससे पहले गांव के बच्चों को शिक्षा हासिल करने के लिए अन्य गांव में जाना पड़ता था। स्कूल बनाने के दौरान जब रास्ते की आवश्यकता हुई तब तेजाराम ने अपनी 60 बीघा जमीन दान कर दिया। -Two farmers Bhuparam and Tejram donated their land for the school
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स्कूल के लिए दी अपनी जमीन
तेजराम की पत्नी का नाम विद्यावती (Vidyawati) था और आज वह दोनों इस दुनिया में नहीं है। परंतु यह स्कूल उनकी याद हमेशा ही दिलाती रहेगी। विक्रम शर्मा (Vikram Sharma) जो कि इसी गांव से ताल्लुक रखते हैं वह बताते हैं कि बहुत वर्ष पूर्व की बात है कि जब हमारे गांव में स्कूल नहीं था परंतु आज हमारे गांव में एक प्राथमिक विद्यालय (Primary School) है और हम स्वयं बहुत गौरवान्वित महसूस करते हैं। इस गांव के सभी व्यक्ति खेती से अपना गुजारा किया करते थे। उन्हीं लोगों में एक थे भूपराम और तेजराम, वे दोनों किसान थे। यहां स्कूल बनाने के लिए प्रस्ताव रखा गया था परंतु इसे किसी ने स्वीकार नहीं किया था क्योंकि स्कूल के लिए मुफ्त जमीन देनी थी। कोई भी किसान इस कार्य के लिए राजी नहीं था। वर्ष 1999 में जब इन दोनों किसानों ने जमीन दान किए तो यहां पढ़ने के लिए बच्चे एकत्रित होने लगे।
-Two farmers Bhuparam and Tejram donated their land for the school
600 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं
वर्ष 2003 में ऐसे स्कूल के भवन की आधारशिला रखी गई। आज यहां स्कूल में बच्चे पढ़ रहे हैं और शिक्षा के महत्व को समझ रहे हैं। यहां लगभग 600 से भी अधिक बच्चे आ चुके हैं इसी वर्ष लगभग 100 बच्चों ने एडमिशन कराया है जिसमें लगभग 56 लड़कियां है। मोहम्मद याकूब सिद्धकी जो कि यहां के सहायक शिक्षक हैं वह बताते हैं कि जब मैंने वर्ष 2016 में यहां पढ़ाना प्रारंभ किया तो मैंने यह देखा कि बच्चे किस तरह पढ़ रहे हैं और उनके पढ़ने की शैली कितनी अच्छी है। -Two farmers Bhuparam and Tejram donated their land for the school
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पढ़ाई के लिए जाते थे दूसरे गांव
वह बताते हैं कि महामारी के दौरान भी बच्चों ने अपने घर पर परिश्रम किया और पढ़ाई को जारी रखा। वह बताते हैं कि इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब यहां स्कूल नहीं थी तो किसानों ने अपनी जमीन दान की ताकि बच्चे पढ़ाई कर सकें। यहां के निवासी शिवकुमार जो कि 40 वर्ष के हो चुके हैं वह अपने दिनों को याद करते हुए कह रहे हैं कि वह लगभग वह बहुत लंबी दूरी तय कर पैदल चल के दूसरे गांव में पढ़ाई करने के लिए जाते थे। मैं शुक्रगुजार हूं दोनों किसानों का जिन्होंने स्वयं तो तकलीफ सहा ही परंतु अन्य बच्चों के लिए बेहद सराहनीय कार्य किया। -Two farmers Bhuparam and Tejram donated their land for the school
यहां की एक महिला रामगुनी (Ranguni) बताती हैं कि जब मैं यहां शादी करके आई तो यहां कोई विद्यालय नहीं था अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए कहीं और गांव में लेकर जाना है जो मेरे लिए बेहद असुविधाजनक था। परंतु आज का वक्त बहुत अलग है बच्चे शिक्षा अपने गांव में ही हासिल कर ले रहे हैं। वही पहले के वक्त में लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर तय करनी पड़ती थी और बच्चे अन्य गांव के स्कूल में जाते थे। -Two farmers Bhuparam and Tejram donated their land for the school
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