महाराष्ट्र के पालघर जिले के दहानू तहसील का बार्डि गांव अपने खूबसूरत वातावरण के साथ चीकू के लिए भी प्रसिद्ध हैं। 2016 में भारत सरकार द्वारा इस जगह को चीकू के लिए GI टैग प्रदान किया गया है। इसी गांव के रहने वाले है महेश चूरी जो चीकू से 21 तरह के उत्पाद बनाकर सालाना करीब एक करोड़ की कमाई कर रहे हैं।
महेश चूरी(Mahesh Churi) का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। इन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद मुम्बई में कुछ समय तक नौकरी की। इसके बाद उन्होंने 1983 में अपने गांव आकर यहा सूमो इलेक्ट्रिकल्स(Sumo Electricals) नाम से एक कंपनी खोली। इसमे वह लोगो के डिमांड के हिसाब से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाते हैं।
चीकू पाउडर बनाने के लिए ग्राइंडिंग मशीन बनाई
महेश अपने गांव के लोगो के लिए कुछ करना चाहते थे। वह चाहते थे कि इनके गांव को एक पहचान मिले। इसके लिए उन्होंने अपने गांव की खासियत चीकू को एक ब्रांड बनाने की सोची। महेश ने काफी रिसर्च के बाद चीकू पाउडर बनाने की सोची। पर दिक्कत यह थी कि इसके लिए मशीन नही थी। तब महेश ने पहले अपने ही लैब में इसके लिए ग्राइंडिंग मशीन बनाई। वह बताते है कि इस मशीन से आसानी से चीकू पाउडर बनाया जा सकता हैं।
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चीकू पाउडर के बिज़नेस से इन्हें घाटा हुआ
महेश चूरी के बनाये चीकू पाउडर तो गुणवत्ता में बेहतरीन थे पर बाजार से इसे अच्छा रेस्पांस नही मिला। इसकी वजह थी इसकी कीमत ज़्यादा होना। होता यह था कि इस चीकू पाउडर को बनाने मे किसी भी तरह की मिलावट नही की जाती थी और इसे बनाने में मेहनत भी ज़्यादा लगती थी। इस कारण से इसकी कीमत बाजार में ज़्यादा हो जाती थी। इससे महेश को घाटा हुआ पर उन्होंने हिम्मत नही हारी और अपने काम मे लगे रहे।
चीकू पार्लर की शुरुआत
महेश चीकू पाउडर की असफलता से डरे नही बल्कि वह चीकू पाउडर से अन्य उत्पाद बनाने में जुट गए। इस मेहनत के परिणाम के रूप में चीकू पार्लर की शुरुआत हुई।
चीकू पार्लर- सब कुछ चीकू(Chikoo parlour- sub kuch chikoo) की शुरुआत 2016 में की गई थी। इसका टैगलाइन है सब कुछ चीकू। अपने टैगलाइन की तरह ही इस आउटलेट में कुल्फी, मिठाई, रवा से लेकर सब कुछ चीकू का ही मिलता हैं। इस आउटलेट की सफलता देख कर महेश चूरी ने मुम्बई-अहमदाबाद NH 8 पर दूसरा पार्लर खोला। आज महेश चूरी के इस तरह के चार चीकू पार्लर हैं।
स्थानीय लोगो को रोजगार दिया हैं
महेश कहते हैं कि चीकू से जुड़ा यह व्यवसाय करने का उनका उद्देश्य सिर्फ पैसे कमाना नहीं था बल्कि अपने गांव के लोगों को आए का एक दूसरा साधन प्रदान करना था। वह अपने गांव एक पहचान बनाना चाहते थे यहां की स्थानीय लोगों को आत्मनिर्भर और महिलाओं को भी सशक्त बनाना चाहते थे। वह बताते हैं कि उनकी फैक्ट्री में अभी 20 आदिवासी महिलाएं काम करती हैं। इन्हें ट्रेनिंग दी गई है। यह सुबह 8 बजे से दिन के 2 बजे तक काम करती हैं पर इन्हें तनख्वाह पूरे दिन की दी जाती है। इसके अलावा इनके यहां 20 अन्य स्थानीय युवक भी नौकरी करते हैं। महेश बताते हैं कि इनकी फैक्ट्री गांव के ही पास में है जहां पर पहले चीकू पाउडर बनाया जाता है। इसके बाद इस पाउडर से कुल्फी, रवा, मिठाई जैसे उत्पाद बनाए जाते हैं। इन उत्पादों की खासियत यह है कि इसमें किसी भी तरह की मिलावट नहीं होते, यह पूर्ण तरह से शुद्ध होता है।
किसानों से निश्चित भाव पर ही चीकू खरीदते हैं।
महेश के अनुसार वह चीकू के मौसम में प्रतिदिन 25 किसानों से 300 किलोग्राम तक चीकू खरीदते हैं। बाजार में अगर किसानों को कम भाव भी मिलता हो पर महेश उन किसानों से निश्चित और उचित मूल्य पर ही चीकू खरीदते हैं। महेश एक खास बात बताते है कि वह किसानों से पेड़ से पक कर गिरे चीकू ही खरीदते हैं ना कि तोड़े हुए चीकू। कुछ किसान कच्चे चीकू तोड़ कर उसे केमिकल से पका देते है। इससे बचने और ग्राहकों को शुद्ध प्रोडक्ट देने के लिए वह पेड़ से गिरे चीकू खरीदते हैं।
कंपनियां इनके ब्रांड की फ्रैंचाइज़ी मांगती है
महेश बताते है कि बहुत सी कंपनियां इनके ब्रांड की फ्रैंचाइज़ी मांगती हैं। पर महेश चूरी की ख्वाहिश है कि वह अपना खुद का ब्रांड बनाए। उनकी योजना देशभर में आउटलेट खोलने की हैं। उनका कहना है देशभर के किसान जो चीकू की खेती करते है वह महेश से जुड़ कर खुद चीकू की प्रोसेसिंग करे। इसमे महेश चूरी उन किसानों की मदद के लिए तैयार हैं। अपने चार आउटलेट से ही महेश चूरी(Mahesh Churi) की सालाना कमाई एक करोड़ रुपए के करीब हैं।
अगर कोई भी किसान महेश चूरी से संपर्क करना चाहता है तो वह 9224592529 पर कॉल कर सकता हैं।
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