हमारे समाज में महिलाऐं अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक एक अहम किरदार निभाती है। एक महिला एक अच्छी बेटी के साथ-साथ एक अच्छी माँ भी बनती है। अपनी सभी भूमिकाओं में निपुणता दर्शाने के बावजूद आज के आधुनिक युग में महिला पुरुष से पीछे खड़ी दिखाई देती है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की योग्यता को आज भी आदमी से कम देखा और आंका जाता है। कुछ जगहों पर उन्हें आगे नही बढ़ने दिया जाता है। आज हम एक ऐसी ही महिला के बारे में बताने वाले हैं जिन्होंने अपने रास्ते की सभी बाधाओं को पार कर सफलता हासिल की, यह कहानी है जुलेखा बनो की (Advocate Julekha Bano) जो आज वकील बन चुकी हैं।
विश्व में कुछ जगह ऐसे भी हैं जहाँ महिलाओं को हर काम करने की खुली छूट नही है। महिलाएं सीमा में रहकर कोई भी काम करती हैं। पर आज हम एक ऐसी महिला के बारे में बताएंगे जिन्होंने इन बंदिशों को तोड़ते हुए आगे बढ़ी।हम बात कर रहे हैं “जुलेखा बानो” की। लद्दाख के एक छोटे से गांव की रहने वाली जुलेखा बानो जो एक ऐसे समुदाय से आती हैं जहां आज भी बच्चों को पढ़ने, खेलने या टीवी देखने की मनाही है। लेकिन इसके बाद भी सामाजिक बहिष्कार को सहते हुए जुलेखा बानो ने ना केवल उच्च शिक्षा प्राप्त की बल्कि अपने समुदाय की पहली वकील बनी।
गांव में था दहशत का माहौल
लद्दाख के बोग्दंग गांव की रहने वाली जुलेखा बानो (Julekha Bano) बाल्टी समुदाय से संबंध रखती हैं। यह समुदाय भारत के उत्तरी भाग कारगिल के क्षेत्र में रहता है। इस समुदाय की अपनी अलग संस्कृति एवं भाषा है। जुलेखा बानो के गांव में आतंकियों के कारण हमेशा दहशत बनी रहती थी। जिसके कारण उनके गांव में ना मोबाइल टावर था, ना टीवी। यहां तक की उनके गांव में किसी पर्यटक को भी आने की अनुमति नहीं थी। गांव के लोग आतंकियों के कारण अपने बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल तक नहीं भेजते थे। गांव में इतना डर का माहौल था कि लड़कियों को घर के चारदीवारी में बंद करके रखा जाता था।
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पिता के द्वारा सहयोग मिला
जुलेखा के पिता ने जुलेखा बानो (Julekha Bano) और उनकी बहन को शिक्षा दिलाई। जुलेखा बानो ने गांव के पास स्थिति आर्मी गुडविल स्कूल में अपनी चौथी कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की। जुलेखा बानो के पिता एक छोटे ठेकेदार थे, जो सेना की मजदूरों की जरूरतें पूरी करने में मदद करते थे। उन्होंने अपने बच्चों के सपनों के साथ कभी समझौता नहीं किया। एक बार जब जुलेखा बानो ने अपने स्कूल के आयोजन में नृत्य किया तो इसका खामियाजा उनके परिवार को भुगतना पड़ा। समुदाय के लोगों ने उनके परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। इस बहिष्कार से भी उनके पिता तनिक भी विचलित नही हुए। वह धैर्य न खोते हुए भी अपने परिवार को संभालते रहे।
बेचनी पड़ी थी जमीन
सामाजिक बहिष्कार होने के बाद अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए जुलेखा बानो के पिता को अपनी जमीन तक बेचनी पड़ी। उनके पिता ने अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कई अधिकारियों, प्रतिनिधियों और पत्रकारों से संपर्क किया। लेकिन किसी ने उनकी कोई मदद नहीं की। उन्होंने तभी ही ठान लिया कि वह अपने पैरों पर खड़ी होंगी। तभी से उन्होंने वकील (Advocate) बनने की ठान ली। पूरे आत्मविश्वास के साथ वह अपने सपने को पूरा करने में जुट गईं।
अपने सपने को पूरा किया
देहरादून में पढ़ाई करने के बाद जुलेखा बानो (Milega Bano)ने वकालत की पढ़ाई पूरी की। जब उनका अंतिम परिणाम आया और उसमें वो उत्तीर्ण हुईं तब उन्हें पता चला कि वह अपने समुदाय की पहली महिला वकील बनी हैं। जुलेखा बानो ने Advocate बनकर अपने समुदाय के सामने एक नई मिसाल पेश की हैं। यही नहीं जुलेखा बानो वकालत के साथ-साथ गांव में मानसिक और दिव्यांग बच्चों के लिए एनजीओ शुरू करने का प्रयास कर रही हैं। आज उनकी तारीफ हर तरफ हो रही है। आज जुलेखा महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि अगर कुछ करने का जुनून हो तो कोई भी मंजिल दूर नही है।