Wednesday, December 13, 2023

महज 7 वर्ष की उम्र से सिर पर मैला ढोई, 14 में हुई शादी आज भारत सरकार ने दिया पद्मश्री सम्मान: Padamshree usha chaumar

अधिकतर लोग ज़िन्दगी में आने वाली तकलीफों और संघर्षो की शिकायत करते मिलते है। लेकिन वो भूल जाते है की जीवन एक संघर्ष है। बिना संघर्ष के जीवन अधूरा होता है, बिलकुल वैसा ही जैसे बिना नमक के खाना। नमक का अकेले स्वाद लोगो को पसंद नही आता,लेकिन खाने में नमक मिला देने से खाना स्वादिष्ट हो जाता है।

क्या आप सोच सकते हैं कि कोई महिला जो कभी मैला उठाया करती थी वो आज सैकंड़ों महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने लगेगी और पद्मश्री सम्मान को प्राप्त करेगी । जी हां, राजस्थान के अलवर शहर की रहने वाली उषा चौमर कभी नालियों में से मैला ढोने का काम किया करती थीं। कभी सिर पर मैला ढोने वाली उषा चौमार (Padma Shri awardee Usha Chaumar) आज स्वच्छता मिशन में जाना पहचाना नाम है। स्वच्छता के लिए काम करने वाली उषा अमेरिका सहित पांच देशों की यात्रा कर चुकी हैं। आज अपने साथ 100 से भी ज्यादा महिलाओं को जागरूक कर आत्मनिर्भर बना चुकीं है। उनके संघर्ष के बारे में जानकर आपको भी उनपर गर्व होगा।

पद्मश्री उषा चौमार ने मैला ढोने का किया काम किया (Padma Shri awardee Usha Chaumar)

उषा चौमार के संघर्ष का सफर बचपन में ही शुरू हो गया था। मात्र 7 साल की उम्र से ही वो अपने मां के साथ मैला ढोने का काम करने जाती थीं। 10 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई, और 14 साल की उम्र में गौना हो गया। ससुराल आकर भी अपनी सास और अन्य घर की महिलाओं के साथ उन्होंने मैला ढोने का काम जारी रखा। उषा के अनुसार उनके समाज के लोगों के साथ बहुत छुआछूत हुआ करता था, अगर कभी प्यास लगती थी तो पानी भी उन्हें ऊपर से पिलाया जाता था। कुछ घरों से उन्हें इस काम के बदले पुराने कपड़े तो कुछ के घर से रात का बासी खाना, झोली में दूर से डाला दिया जाता थ। महीने भर काम करने के बाद भी उन्हें हर घर से केवल 10 रुपए मिलते थे और वो भी फेंक कर दिए जाते थे।

Padam shree usha chaumar life story
Padam shree Usha Chaumar (पद्मश्री उषा चौमार)

जीवन में आया बदलाव (Life changing of Padma Shri awardee Usha Chaumar)

उषा आम महिलाओं की तरह दिन-रात मैला ढोने का काम कर ही रहीं थी कि इस बीच उनकी मुलाकात साल 2003 सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक से हुई। उषा गर्मियों के दिनों में रोजाना की तरह मैला ढोने जा रहीं थी कि अचानक उन्हें बिंदेश्वर पाठक ने रोका और उनके काम के बारे में सवाल पूछा। पहले तो उषा डर गईं लेकिन फिर उन्होंने जवाब दिया कि हमारे पुरखे सालों से ये काम करते आ रहे हैं हम कैसे छोड़ दें। जिसके बाद बिंदेश्वर पाठक ने उन्हें नया काम करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने उषा को दिल्ली आने का न्यौता दिया। जिसके बाद उषा के जीवन में नया बदलाव आया।

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आत्मनिर्भर बनी महिलाएं

उषा ने जब दिल्ली जाने की बात अपने घर में बताई तो पहले सभी ने उन्हें मना कर दिया। लेकिन लाख कोशिश करने के बाद उनके परिवारवाले दिल्ली भेजने को तैयार हो गए। इसके बाद उषा डॉ. बिंदेश्वर की संस्था ‘नई दिशा’ से अलवर में जुड़ीं और वहां काम करना शुरू किया। यहां पर वो सेवई, पापड़, दीए की बाती, सिलाई, कढ़ाई और जूट का बैग बनाने का काम करने लग गईं। उन्हें महीने के सही पैसे मिलने लगे। इसके बाद उन्होंने अन्य महिलाओं को भी अपने साथ जोड़ा। शुरूआत में 28 महिलाएं जुड़ी। लेकिन धीरे-धीरे यह आंकड़ा बढ़ता गया।

शुरूआत में हुई दिक्कत (Padma Shri awardee Usha Chaumar early life)

उषा ने जब सुलभ संस्था के साथ बत्तियां बनाने का काम किया तो वो काली बनती थी क्योंकि उन्हें सुबह नहाकर काम पर जाने की आदत नहीं थी। लेकिन संस्था के लोगों ने उनके भ्रम को दूर किया और कहा कि अगर साफ़ सुथरी होकर नहीं आओगी तो काम नहीं करने दिया जाएगा। जिसके बाद वो मन लगा कर काम करने लगी। इस दिशा में उषा ने अपनी तरह मैला ढोने वाली 115 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है और उनका पुनर्वास किया है. इसी काम के ज़रिए उन्हें अमरीका, पेरिस और दक्षिण अफ्रीका जाने का मौक़ा मिला।

Padam shree usha chaumar life story

महिलाओं के लिए काम किया

उषा चौमार ने अपने साथ होते बदलाव के परिणामस्वरूप गांव की अन्य महिलाओं को भी अपने साथ जोड़ा। उन्होंने मैला ढोने वाली अलवर की 157 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया। उषा खुद अनपढ़ है, लेकिन बेटी को स्नात्तक की परीक्षा दिलवा रही है। उषा चोमार के कारण आज महिलाएं सम्मान से जीवन जीती हैं और अचार, पापड़, बत्ती सहित अनेक सामान बनाती हैं। अलवर के लोग उन सामान को खरीदते हैं, जो लोग कल तक उन महिलाओं को अपने बराबर में नहीं बैठ आते थे वो लोग आज महिलाओं के हाथ से बने हुए सामान को काम में लेते हैं।

सम्मानित हुईं उषा चौमर(Usha Chaumar awarded with padam shree)

उषा चौमार अपने समाज सुधार के कार्यों के लिए कई सम्मान से सम्मानित हो चुकीं है। वो 17 सालों से मैला ढोने के कार्य का विरोध करते हुए महिलाओं को जागरूक कर रही हैं। उषा वाराणसी में अस्सी घाट की सफाई कार्य में शामिल हो चुकी है। इसके लिए देश के प्रधानमंत्री ने साल 2015 में उनको सम्मानित किया। उषा को हाल ही में देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से भी नवाजा गया है।

उषा चौमार महिलाओं को आत्मनिर्भर बना कर आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन चुकीं है। उषा जैसी महिलाओं की आज देश को सख्त जरूरत है। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि जब संघर्ष की चक्की चलती है तभी मेहनत का आटा पिसता है और उसके बाद सफलता कि ऐसी रोटी पकती है जो पूरे समाज को रौशन करती है।

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