आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रही है। महिलाएं हर वो काम कर रही है जो पुरुष कर रहे हैं। महिलाएं किसी भी काम को लगन मेहनत और शिद्दत के साथ करती हैं जिससे एक सफल महिला तो बनती ही है और साथ-साथ अपने परिवार और अपने समाज का नाम रोशन करती हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही महिला की कहानी बताएंगे जिन्होंने अपनी मेहनत से खेती करके सफलता हासिल किए और इन्हें दो बार राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।
संतोष पचर (Santosh Pachar) राजस्थान (Rajasthan) के सीकर (Sikar) जिले के झिगर (Jhigar) बड़ी गांव की रहने वाली हैं। इनकी शिक्षा सिर्फ आठवीं कक्षा तक ही हुई है। संतोष पचर साल 2002 में जैविक तरीके (Organic Methods) से खेती करने की शुरुआत की। जब इन्होंने जैविक तरीके से खेती करने की शुरुआत की तो पहली बार गाजर की खेती की जिसमें उन्हें इस गाजर की उपज पतले, टेढ़े और लंबे हुए। संतोष को इस फसल को देखकर यह लगा कि वह जो बाजार से इस गाजर की बीज लाए थे वह खराब था। संतोष बताते हैं कि इसके बाद मैंने इसके बारे में काफी सोच विचार किया। कृषि अधिकारी क्या होता है, यह हमें पता नहीं था। इसके बाद मैंने कृषि मेलों में भाग लेना शुरु कर दिया। वहां जाकर हमने किसी के बारे में काफी जानकारियां हासिल किए। इसीलिए संतोष में अपने फसल को काफी बेहतर बनाने के लिए इन्होंने खुद से बीज को तैयार करना शुरु कर दिया।
संतोष (Santosh Pachar) ने गाजर का बीज (Seed of Carrots) बिल्कुल नए तरीके से तैयार किया। इस बीज को बनाने में उन्होंने एक kg गाजर के बीज में 15 ml शहद और 5ml घी मिलाया और इसके बाद इसे छाया में सुखा करके नई तरीके से गाजर का बीज बनाया। उन्होंने इस बीज को अपने खेतों में वो दिया जब गाजर की फसल तैयार हुई तो फसल काफी अच्छा हुआ। संतोष ने अपने परिश्रम से तैयार की हुए गाजर के बीज से तैयार हुआ। गाजर का फसल की मिठास लगभग 5% और उत्पादन क्षमता लगभग दो से तीन गुणा तक बढ़ गई। संतोष की इस परिश्रम को देखकर और इन्हें अपने तरीके से गाजर की खेती करते देकर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने संतोष को तीन लाख रुपए का इनाम और इसके साथ एक प्रशस्ति पत्र दिया।
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संतोष (Santosh) को गाजर की खेती में सफलता के बाद और राष्टपति से पुरस्कार मिल जाने के बाद इनका हौसला और भी बढ़ गया। इन्होंने इसके बाद गाय के गोबर से गैस संयत्र बनाने में लग गए। आखिरकार इन्होंने गोबर संयंत्र में भी सफलता हासिल की। इनके इस काम से गांव के लगभग 20 घर में इनका लाभ पहुंच गया। इसके साथ-साथ संतोष ने गांव के सभी महिलाओं को खेती करने के लिए नए-नए तरीके के बारे में बता कर उनकी मदद भी करती थी।
संतोष पचर (Santosh Pachar) हर काम में परिपूर्ण थी और हर काम में वह सफलता हासिल करती थी। संतोष ने बागवानी करके इसमें भी सफलता हासिल किए। संतोष के पति गार्ड का काम करते थे। जब संतोष के पति गार्ड का काम करते थे तब उन्होंने अनार के पौधों को देखा जिसके बाद उन्हें अनार के पौधे लगाने का विचार आया। फिर उन्होंने अपनी पत्नी संतोष को अनार की बागवानी के बारे में बताएं। संतोष ने अपने पति के इस अनार की बागवानी के बारे में सुनी तो वह इसे करने के लिए तैयार हो गए फिर वे अनार की बागवानी करने में जुट गए।
संतोष और इनके पति दोनों ने अपने खेतों में अनार के पोधे लगाए पौधे लगाने के बाद इन्हें लगभग 3 साल तक इंतजार करना पड़ा। 3 साल के बाद अनार के पेड़ में फल आने लगे। अनार के फल आने के बाद संतोष को इस अनार की बागवानी से काफी मुनाफा हुआ। इसके बाद इन्होंने अपने खेतों में अमरुद और नींबू के पौधे लगाना शुरु कर दिए। जब इन्होंने नींबू और अमरुद को बाजारों में बेचा तो काफी ज्यादा मुनाफा मिला। संतोष अपनी बागवानी से सलाना लगभग 25 से 30 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं। संतोष पचर वर्तमान में 30 बीघा में खेती करती हैं। और यह 30 बीघा खेत के अकेली मालकिन खुद संतोष पचर हैं। संतोष को इस तरह अपने खेतों में मेहनत और परिश्रम करते देख गांव के और भी महिलाएं काफी प्रेरित हो गई। इन्हें देख कर गांव की और भी महिलाओं को खेतों के तरफ रुझान होने लगा है। राजस्थान की यह महिला संतोष पचरा महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बन गई हैं। इन्होंने महिलाओं को दिखा दिया है कि महिलाएं हर काम को कर सकती हैं और उसमें सफल भी हो सकती हैं।
संतोष पचर( Santhosh) ने अपनी मेहनत और परिश्रम से अपने खेतों में काम किया और अपने राज्य में अपना नाम रोशन किया। इनकी यह काबिलियत को देखकर इन्हें दो बार (2013 और 2017) में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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