जीवो में सबसे उच्च कोटि का जीव मानव माना जाता है और उसके बाद जानवर। जानवर हमारे प्रकृति के पारिस्थितिक तंत्र में विशेष योगदान निभाते हैं।जानवरों के बिना हमारे संसार में कोई भी क्रियाकलाप नहीं किया जा सकता और कई वैज्ञानिकों का यहां तक मानना है, कि जानवर हमारे पारिस्थितिक तंत्र में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं और जीवन जीने की शैली को विकसित करते हैं।
अगर पालतू जानवरों की बात की जाए तो मनुष्य अपने दिमाग का उपयोग करके पालतू जानवरों से कई काम लेता आया है। गाय के दूध के साथ-साथ भेड़ के ऊँन तक कई जानवरों का इस्तेमाल मनुष्य करता है। आज हम आपको ऐसे ही दो इंसान के बारे में बताएंगे जिन्होंने अपने दिमाग का इस्तेमाल करके हाथी के गोबर (Startup with elephant dung) से आज करोड़ो की कमाई कर रहे हैं। आइये जानते हैं उनके बारे में। जानिए हाथी छाप ब्रांड की कहानी (Hathi chaap)
घूमते हुए योजना बनाई
जिस हाथी के गोबर को लोग कचरा और गंदगी समझते हैं, उसी के गोबर का इस्तेमाल कर महिमा मेहरा और विजेंद्र शेखावत ने आज करोड़ों की “कंपनी“ खड़ी कर दी हैं। महिमा और विजेंद्र एक दिन राजस्थान घुमने गए थे। यहां आमेर नाम का किला घूमते समय उन्हें किले के नीचले हिस्से में ढेर सारी हाथी की लीद यानी गोबर (Dung) दिखाई दी। जहाँ दूसरे लोग इस गोबर को देख नाक सिकुड़ के चुपचाप निकल रहे थे वहीँ महिमा और विजेंद्र को उस गोबर को देख एक ख्याल आया।
हिम्मत से काम लिया (Startup with elephant dung, Hathi Chaap)
महिमा (Mahima) और विजेंद्र (Vijendra) ने यह सोचा कि हाथी के गोबर (Dung) में काफी मात्रा में रेशे होते हैं, जिसका उपयोग वह पेपर बनाने में कर सकते हैं।हाथी के गोबर से पेपर बनाने के बारे में दोनों ने इन्टरनेट पर भी ढूंढा। उन्होंने परिणाम में यह पाया कि श्रीलंका, थाईलेंड और मलेशिया में पहले से ही यह काम किया जा रहा हैं। इस चीज से उन्हें थोड़ी हिम्मत भी मिली। वहीं दोनों ने यह भी सोचा कि हाथी का पाचन तंत्र बहुत ख़राब होता है इसलिए उसकी लीद में काफ़ी रेशे बचे रह जाते हैं। इसी वजह से लीद से बनने वाले पेपर की गुणवत्ता अच्छी होगी। बस क्या था दोनों ने बहुत हिम्मत से काम लिया और आगे बढ़ने की ठान ली।
यह भी पढ़ें :- तोरई के लूफा से करें लाखों में कमाई, एक Natural Loofah हज़ारों में बिकती है: बिज़नेस आईडिया
लोन लेकर काम शुरू (Initiative of Hathi chaap)
दोनों ने हिम्मत करके 15000 का लोन लिया और इस हाथी के गोबर (Dung) का इस्तेमाल अपने बिजनेस में कच्चेमाल के रूप में करने लगे। इस तरह सन 2007 में दोनों ने हाथी छाप ब्रांड को भारत में लांच किया। यह हाथी छाप ब्रांड गांव वालों की एक छोटी सी टीम की मदद लेता हैं और गोबर की प्रोसेसिंग कर पेपर तैयार करता हैं। इस ब्रांड के तहत नोटबुक, फोटो एल्बम, फ्रेम्स, बैग्स और स्टेशनरी सहित कई प्रोडक्ट्स का निर्माण किया जाता हैं। इन प्रोडक्ट्स की कीमत 10 रूपए से लेकर 500 रूपए तक होती हैं।
मेहनत के बदौलत कमाई
(Startup with elephant dung, Hathi Chaap)
महिमा (Mahima) और विजेंद्र (Vijendra) के इस बिज़नेस में हाथी की लीद को साफ करना सबसे बड़ी प्रक्रिया है। लीद को पहले बड़े वाटर टैंक में धोया जाता है और पानी जो बचता है वह खाद के रूप में उपयोग में लाया जाता है। लीद को सुखाकर इसका उपयोग पेपर बनाने में किया जाता है। यह पूरी तरह इको- फ्रेंडली भी है। महिमा और विजेंद्र के मेहनत का परिणाम यह निकला कि जल्द ही इस हाथी छाप ब्रांड के प्रोडक्ट्स जर्मनी, और यूनाइटेड किंगडम में भी बिकने लगा और कंपनी का टर्न ओवर करोड़ों में पहुंच गया है।
आज अपने दिमाग का सही जगह इस्तेमाल करके महिमा मेहरा और विजेंद्र शेखावत ने यह साबित कर दिया है कि अगर आपके पास कार्य करने की योजना के साथ-साथ अगर आप मेहनती हैं तो आपको करोड़पति बनने से कोई नही रोक सकता। उन्होंने अपनी मेहनत एवं योजना के बदौलत जो नाम कमाया है वह प्रशंसा के योग्य है। लोगों को इनदोनों से सीखने की आवश्यकता है।
अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।
सकारात्मक कहानियों को Youtube पर देखने के लिए हमारे चैनल को यहाँ सब्सक्राइब करें।