पहले के समय में शिक्षा को बहुत पावन कार्य माना जाता था। यही वजह है कि उस दौर में गुरु का ऊद्देश्य अपने शिष्यों के भविष्य को संवारना और उनके जीवन में अंधकार को खत्म करके उजाला फैलाना होता था। इसके बदले में उन्हें धन कमाने की लालच नहीं होती थी लेकिन आजकल लोगों ने शिक्षा को पैसा कमाने का जरिया बना दिया है। पर आज भी कुछ लोग अभी भी ऐसे हैं जो शिक्षा को कमाने का जरिया न मानकर समाज को सही की ओर लेकर जाने का माध्यम मानते हैं।
आज की यह कहानी भी एक ऐसे ही शिक्षक की है जिसने रिटारमेंट के बाद भी 93 की उम्र में बैसाखी के सहारे कॉलेज जाकर छात्रों को पढ़ाती है। चलिए जानते हैं आज के इस युग में ऐसे महान गुरु के बारें में- The Story of Chilukuri Santhamma, Professor of Physics at Centurion University, Andhra Pradesh who teaches at the age of 93.
कौन है वह शिक्षक?
दरअसल, हम बात कर रहे हैं आँध्रप्रदेश (Andhra Pradesh) की प्रोफेसर चिलुकुरी संतम्मा (Chilukuri Santhamma) की, जो फिजिक्स की प्रोफेसर (Professor of Physics Subject) है।भौतिकी विषय को पढ़ाना सिर्फ उनका शौक ही नहीं बल्कि उनके जीवन का ऊद्देश्य भी है। जिस उम्र में लोगों का शरीर साथ देना बन्द कर देता है उस उम्र में संतम्मा कॉलेज जाकर छात्रों का भविष्य संवार रही हैं। उन्होंने साबित कर दिया है कि उम्र सिर्फ एक संख्या है।
बैसाखी के सहारे जाती हैं कॉलेज
93 वर्षीय चिलुकुरी संतम्मा (Chilukuri Santhamma) आन्ध्रप्रदेश के विजयानगरम स्थित सेंटुरियन यूनिवर्सिटी (Centurion University) की 6 दशकों से प्रोफेसर के तौर पर पढ़ा रही हैं। उम्र बढ़ने के साथ शरीर रोग का घर बन जाता है और लोगों को तरह-तरह की बीमारियां घेर लेती हैं। संतम्मा के घुटने में भी समस्या होने की वजह से सर्जरी हुई है इसके बावजूद भी वह बैसाखी की मदद से चेहरे पर मुस्कान लिए पढ़ाने पहुंच जाती हैं।
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उम्र मायने नहीं रखती है
The New Indian Express की रिपोर्ट के अनुसार, संतम्मा कहती हैं कि उन्हें उम्र से कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने बताया कि, उनकी मां वन्जक्शम्मा 104 वर्ष तक जिन्दा रही थीं। वह आगे कहती हैं कि, इन्सान को दिल और दिमाग दोनों को स्वस्थ्य रखना चाहिए क्योंकि धन दिलों पर और स्वस्थ्य दिमाग पर निर्भर रहता है। अर्थात यदि हम अपने आप को बीमार समझने लगेंगे तो स्वस्थ्य होने के बावजूद भी बीमार हो जाएंगे। वे अपने आप को मानती है कि अंतिम सांस तक पढ़ाने के उददेश्य से यहां हैं।
क्लास नहीं छोड़ना चाहते हैं स्टूडेंट्स
प्रोफेसर संतम्मा के समर्पण और मेहनत से सभी छात्र काफी प्रभावित हैं क्योंकि उन्हें अपने क्लास जाने में देर नहीं होती है और वह अपने काम के प्रति काफी समर्पित रहती हैं। यही वजह है कि कोई भी विद्यार्थी उनके क्लास को किसी भी स्थिति में छोड़ना नहीं चाहता है। उन्हें सभी विषयों के बारें में इतना अधिक ज्ञान है कि छात्र उन्हें चलता-फिरता इनसाइक्लोपीडिया कहते हैं।
महाराज विक्रम देव वर्मा ने गोल्ड मेडल से किया था सम्मानित
8 मार्च 1929 में मछलीपट्टनम में जन्मी प्रोफेसर संतम्मा जब महज 5 माह की थी तभी उनके पिता ने अंतिम सांस ली। उसके बाद उनके मामा ने उनका लालन-पालन किया। 1945 में विशाखापट्टनम के AVN कॉलेज में इण्टरमीडिएट की स्टूडेंट थी उस समय उन्हें भौतिकी के लिए महाराजा विक्रम देव वर्मा ने गोल्ड मेडल से सम्मानित किया था।
कई केंद्र सरकारी डिपार्टमेंट्स में दे चुकी हैं सेवा
संतम्मा ने फिजिक्स विषय से ही आँध्रप्रदेश यूनिवर्सिटी से B.sc किया और फिर माइक्रोवेव स्पेक्ट्रोस्कोपी से D.sc की डिग्री हासिल की जो Phd के बराबर होती है। उसके बाद वह 1956 से आंध्र प्रदेश यूनिवर्सिटी में कॉलेज ऑफ साइंस में भौतिकी के प्रोफेसर के तौर पर अपना करियर शुरु किया।
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रिटायर्मेंट टर्म नहीं आया फिजिक्स के पैशन के बीच
बता दें कि प्रोफेसर संतम्मा कई केंद्र सरकारी डिपार्टमेंट में भी अपनी सेवा दे चुकी हैं जैसे डिपार्टमेंट एंड साइंस टेक्नोलॉजी (DCAT), यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (UGC), साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) आदि। 1989 में 60 वर्ष की आयु में उनका रिटायर्मेंट हो गया लेकिन ये रिटायर्मेंट उनके पैशन के राह का कांटा नहीं बना। उन्होंने उसके बाद भी फिजिक्स पढ़ाने के पैशन को जारी रखा जो आज तक जारी है।
विद्या दान के साथ-साथ घर भी कर किया दान
आपको जानकार हैरानी होगी कि रिटायर्मेंट के बाद भी विद्या का दान करने वाली संतम्मा ने विवेकानंद मेडिकल ट्रस्ट को अपना घर भी दान के रूप में दे दिया है और स्वयं एक किराए के मकान में रहती हैं। वह कहती हैं कि उम्र के इसा पड़ाव में भी उनके अंदर एक दिन में 6 क्लासेज लेने की क्षमता है।
गीता के श्लोकों का किया अन्ग्रेजी अनुवाद
बता दें कि, प्रोफेसर संतम्मा (Chilukuri Santhamma) सिर्फ भौतिकी ही नहीं बल्कि वेद, उपनिषदों और पुराणों की भी शौकीन हैं। संस्कृत भाषा में लिखी गीता के श्लोक का उन्होंने अन्ग्रेजी अनुवाद करके एक पुस्तक लिखा है जिसका नाम Bhagavad Gita – The Divine Directive है।
वाकई, यदि हमारे समाज में प्रोफेसर संतम्मा जैसे शिक्षक हो जाएं तो एक बार फिर समाज में शिक्षक का दर्जा वापस लौट आएगा और साथ ही बच्चों के जीवन में भी उजाला ही उजाला होगा। The Story of Chilukuri Santhamma, Professor of Physics at Centurion University, Andhra Pradesh who teaches at the age of 93.